________________
भाषा और साहित्य ]
प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएं
[ ११५
परिलक्षित होती है । महाभारत का बहुत बड़ा भाग परिसंवादों का है । व्यास परिसंवाद लिखने में निःसन्देह असाधारण प्रतीत होते हैं ।
व्यासदेव की एक और अनुपम विशेषता यह है कि वे मानव-चरित्र की विचित्रता का बड़ा सूक्ष्म तथा मार्मिक चित्रण करने में सिद्धहस्त हैं । एक प्रसंग है । अश्वत्थामा द्वारा द्रोपदी के पांचों पुत्रों के मस्तक काट डाले गये । सभी पुत्रों की हत्या की असह्य वेदना और अपरिसीम व्यथा से द्रोपदी चीत्कार कर उठती है । अर्जुन अश्वत्थामा को ढूंढ़ लेता है और उसे पशु की तरह बांध कर घसीटता हुआ द्रौपदी के सामने लाता है । जब अर्जुन अश्वत्थामा का सिर काटने को उद्यत होता है, तो द्रौपदी उसके चरणों में बिछ जाती है और अश्वत्थामा को क्षमा कर देती है ।
महाभारत में मानवीय संवेदना, भावनाओं की कोमलता, विचारों की उदात्तता के न जाने ऐसे कितने प्रसंग हैं, जिन्हें पढ़ कर, सुन कर वज्रोपम कठोर हृदय भी द्रवित हो जाता है । धर्मप्राण, शान्तिप्रिय देश के महान् कवि व्यासदेव ने महाभारत के अन्त में अपना मार्मिक सन्देश इन शब्दों में प्रस्तुत किया है :
न जातु कामान्न भयान्न लोभाद् धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि
हेतोः ।
— काम से, भय से, लोभ से और जीवन की कीमत पर भी धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए ।
गद्यात्मक भाग भी प्राप्त हैं । वे गद्यांश भिन्नवन पर्व और शान्ति पर्व में सात-सात हैं ।
वर्तमान में उपलब्ध महाभारत में कुछ भिन्न पर्वों में हैं। आदि पर्व में तीन हैं । अनुशासन पर्व में तीन हैं । इस प्रकार कुल संख्या में बीस है । शैली और भाषा आषं है । afaaiशतः विभिन्न महर्षियों द्वारा वर्णित उपाख्यान हैं । उनकी भाषा से स्पष्ट है, ये आर्ष गद्यात्मक अंश प्राचीन हैं; अतः इनके आधार पर पाश्चात्य विद्वानों का मन्तव्य कि महाभारत रामायण से प्राचीन है। पर, एक पहलू विशेष रूप से विचारणीय है । महाभारत में रामायण की घटनाएं अनेक स्थानों पर उल्लिखित या संकेतित हैं । यदि महाभारत रामायण से पहले का होता, तो यह कैसे होता ? यह अनुमान करना असंगत नहीं है कि ये गद्यांश बहुत प्राचीन काल में लिखे गये और बाद में महाभारत में जोड़े गये ।
विशेष परिशीलन से अनुमित होता है कि महाभारत में बहुत सारा भाग बाद में मिला है | व्यास ने कौरवों और पाण्डवों की कथा के रूप में इस महाकाव्य का प्रणयन किया । उनके द्वारा रखा हुआ नाम जय था । ऐसा लगता है, आदि पर्व के ६५ वें अध्याय से व्यासदेव ने महाभारत का आरम्भ किया । इससे पहले का अंश बाद का प्रतीत होता है ।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org