________________
भाषा और साहित्य ]
प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएं'
चतुर्विशत्सहस्राणि
श्लोकानामुक्तवानृषिः ।
तथा सर्गशतान् पंच षट् काण्डानि तथोत्तरम् ॥
1
- ऋषि ने रामायण में २४ हजार श्लोकों की रचना की तथा उसे पांचसौ सर्गों और छः काण्डों में विभक्त किया ।
वर्तमान में प्राप्त रामायण में चौबीस हजार से कुछ अधिक श्लोक हैं । सर्गों की संख्या ६४५ है | उससे यह स्पष्ट है कि रामायण की मूल सामग्री कुछ इधर-उधर अवश्य हुई है । कुछ प्रक्षिप्त अंश जुड़े हैं, कुछ सगं लुप्त हो गये हैं, कुछ नये आ गये हैं; अतः प्राप्त रामायण को अक्षरश: वाल्मीकि-रचित तो नहीं माना जा सकता, पर, उसका बहुत अधिक भाग मौलिक है और कुछ ही भाग प्रक्षिप्त या नये रूप में योजित है । निश्चय ही इसके कलेवर में उतना मिश्रण नहीं हुआ है, जितना महाभारत में । शोधपूर्ण छंटनी से सम्भव है, कुछ भाग छंट जाये, पर, अधिकांश भाग यथावत् रह सकता है ।
प्रो०
टालस्वायज़
पाश्चात्य विद्वानों के रामायण के सम्बन्ध में अनेक मत-मतान्तर हैं । बौद्ध ग्रन्थ दशरथ जातक और होमर के इलियड पर आधारित मानते हैं । ॠ वेद में प्राप्त इन्द्र और वृत्र की कथा से इसकी समानता स्थापित करते हैं । होलर का मन्तव्य है कि १३ वीं शती में विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों द्वारा जो दक्षिण विजय किया गया, रामायण उस पर आधारित है । लेसेन ऐसा मानते हैं, आर्यों द्वारा दक्षिण भारत की विजय का जो प्रथम अभियान हुआ, रामायण उसकी पद्यात्मक अभिव्यंजना है। वस्तुतः ये मत एकांगी हैं, अपरिपक्व अध्ययन के द्योतक हैं । भारतीय विद्वानों ने इस विषय में बहुत लिखा है; अतः यहां विशेष ऊहापोह अपेक्षित नहीं है ।
[ ११३
१. रामायण, १, ४, २, २. महाभारत, आदि पर्व, ६२-२६
३. यन्न भारते सन्म भारते
Jain Education International 2010_05
महाभारत - भारतः पंचमो वेदः कहकर महाभारत को रामायण से भी विशिष्ट स्थान दिया गया। भारत में वैदिक परम्परा में वेद-वाक्य से अधिक प्रामाणिक कोई भी वाक्य नहीं माना जाता । महाभारत को पंचम वेद कहकर भारतीय मानस ने इसे अपनी सर्वोच्च श्रद्धा अर्पित की। महाभारत की स्वयं को अपनी घोषणा है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सम्बन्ध में उसमें जो प्रतिपादित हुआ है, अन्यत्र भी वही प्रकारान्तर से वर्णित हुआ है : यदि - हास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् " जो महाभारत में नहीं है, वह कम-से-कम भारतवर्ष में तो और कहीं नहीं है ।" यह केवल अतिरंजन नहीं माना जाना चाहिए । महाभारत के एक छोटे से अंश गीता का विश्व साहित्य में जो स्थान है, उससे यह अनुमेय
2
For Private & Personal Use Only
बंबर इसे प्रो० जैकोबी
www.jainelibrary.org