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________________ ११२ ] भागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उपदेश अथित हो, जो पूर्व-वृत्तों और कथाओं से युक्त हो, वह इतिहास कहा जाता है। रामायण और महामारत इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपवृहयेत् जैसी उक्तियों से प्रकट है कि इतिहास और पुराण, वैदिक ज्ञान का उपवहण ( संबद्धन ) करने वाले माने गये । रामायण-मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन के माध्यम से इस महाकाव्य में आदर्श शासन, कर्तव्य-निष्ठा, न्याय, सदाचार, नीति, सहृदयता, करुणा, त्याग, सेवा, समर्पण, स्नेह तथा आदर्श गृही-जीवन का एक मोहक चित्र उपस्थित किया गया है। इसके रचयिता वाल्मीकि थे। एक व्याध द्वारा आह्वाद एवं क्रिया-रत क्रौंच के मार डाले जाने पर क्रौंची के अन्तर्वेधक विलाप को सुनकर वाल्मीकि का हृदय द्रवित हो उठता है और उनका शोक श्लोक बन जाता है-शोकः श्लोकत्वमागतः । सहसा उनके मुह से शब्द निकल पड़ते हैं: मा निषाद ! प्रतिष्ठास्त्वमगमः शाश्वतीः सभाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधोः काममोहितम् ।' ये शोक-प्रसूत शब्द सहज भाव से अनुष्टुप् छन्द का रूप लिये आते हैं। महाभारत अनेक कषियों की लेखिनी से निःसृत भनेक काव्य-कृतियों का एक पिराट विश्वकोश है, रामायण वैसी रचना नहीं है। यह सारा काव्य प्रायः एक ही मनीषी द्वारा प्रणीत हुआ है। विश्वास किया जाता है कि वैदिक साहित्य के बाद मानव कषि का रचा हुआ यह प्रथम काव्य है। यही कारण है, इसके रचनाकार वाल्मीकि आदि कवि हैं और यह उनका आदि-काव्य । विद्वानों द्वारा किये गये परीक्षण, समीक्षण और पर्यालोचन से यह सिद्ध हुआ है कि निःसन्देह अलंकृत काग्य विधा के ग्रन्थों में यह सबसे पहला ग्रन्थ है। इसमें कवित्व का प्रशस्त प्रस्फुटन हुआ है । शैली की सुकुमारता, सरल एवं प्रचलित शब्दों का प्रयोग, अलंकारों का सहज समावेश, सभी रसों का सम्यक् परिपाक, चरित्र-चित्रण की सूक्ष्मता आदि मौलिक विशेषताए हैं। कहा जाता है कि विश्व के समग्र वाङमय में इस प्रकार के लोकजातीय काव्य-ग्रन्थ कम हैं। रामायण के कलेवर के सम्बन्ध में स्वयं वाल्मीकि ने लिखा है : धर्मार्थकाममोक्षाणामुपदेशसमन्वितम् । पूर्ववृराकथायुक्तमितिहासं प्रचक्षते ॥ २. रामायण, वालकाण्ड, २, ४० ३. वही, बालकाण्ड, २, १५ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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