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________________ भाषा और साहित्य ] प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएं [ ९७ मैत्रेयी की तीव्र उत्कण्- पूर्ण जिज्ञासा पर याज्ञवल्क्य उसे आत्म-ज्ञान का उपदेश देते हैं, जो प्रस्तुत उपनिषद् का महत्वपूर्ण भाग है। मुण्डकोपनिषद् का प्रसंग है । "शौनक नामक महागृहस्थ-समृद्ध तथा भरे-पूरे परिवार वाला गृहस्थ अंगिरा के पास आया और उसने उनसे पूछा-किसके जान लिये जाने पर सब कुछ विज्ञात हो जाता है ?" अंगिरा ने कहा-ब्रह्मवेत्ता कहते हैं, दो विद्याए जानने योग्य हैं - एक परा और दूसरी अपरा । ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्दशास्त्र और ज्योतिष अपया विद्या हैं । परा विद्या वह है, जिससे अक्षर-ब्रह्म का स्वरूप अधिगत होता है ।" उपनिषद् परा विद्या के उद्बोधक हैं। उनमें ब्रह्म, जीव, प्रकृति उनके स्वरूप से सम्बद्ध अनेक विषयों का विशद विवेचन किया गया है। वैदिक परम्परा में तत्त्व-ज्ञान की दृष्टि से उपनिषदों का सर्वाधिक महत्व है। इस परम्परा के अन्तर्गत सभी सम्प्रदायों में उनका समान रूप से आदर किया जाता है। इतना अवश्य है, भिन्न-भिन्न मतानुयायी उनकी व्याख्या में अपने-अपने विचारों की पुट लगा देते हैं। उपनिषदों के तत्त्व-ज्ञान से कतिपय पाश्चात्य विद्वान भी प्रभावित हुए । प्रो० मैक्स मूलर ने इस सम्बन्ध में लिखा है : "उपनिषद् वेदान्त दर्शन के आदि स्रोत हैं। ये ऐसी स्यामिति नेति होवाच याज्ञवल्क्यो यथैवोपकरणवतां जीवितं तथैव ते जोवितयं स्यादमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्त नेति । सा होवाच मैत्रेयी येनाहं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्या यदेव भगवान्वेद तदेव मे होति। -वृहदारण्यकोपनिषद्, द्वितीय अध्याय, चतुर्थ ब्राह्मण, १-३ १. शौनको ह वै महाशालोऽडिगरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ। कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतोति। तस्मै स होवाच । विद्य वेदितव्ये इति ह स्म यद्ब्रह्मविदो वदन्ति परा चैवापरा च । तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथ वेदः शिक्षा करपो याकरणं निश्वतं छदो ज्योतिषमिति । अथ परा पया तवक्षरमधिगम्यते। . -मुण्डकोपनिषद्, प्रथम खण्ड, ३-५ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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