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मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : २ - "भगवन् ! बह में यह सब जानते हुए भी केवल मन्त्र-वेता-शब्दार्थमात्र का जानने वाला हूं, आत्म-बेत्ता नहीं है। मैंने आप जैसों से सुना है, वात्मषित् शोक को पार कर लेता है। भगवान् ! मैं शोकान्वित हूं। आप मुझं शोक के पार कर दीजिए ।"
सनत्कुमार ने कहा-"आप जो कुछ जानते हैं, वह मात्र नाम ही है।'
परिचय-सम्भाषण के बाद आत्म-वेत्ता सनत्कुमार नारद को आत्म-ज्ञान ( ब्रह्म-ज्ञान ) का उपदेश करते हैं।
वृहदारण्यकोपनिषद् का प्रसंग है । याज्ञवल्क्य प्रश्नजित होना चाहते हैं। उनके दो पत्नियां थीं-मैत्रेयी और कात्यायनी । याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा-“मैं गृहस्थ आश्रम से सन्यास आश्रम में जाना चाहता हूं, इसलिए कात्यायनी के साथ तेरा बंटवारा कर दूं।"
मैत्रेयी ने कहा-"भगवन् ! यदि यह धन से परिपूर्ण सारी पृथ्वी मेरी हो जाए, वो क्या में उससे अमर हो सकती हूं ?"
याज्ञवल्क्य ने कहा-“ऐसा नहीं हो सकता। उससे तुम्हारा जीवन वैसा ही होगा, जैसा दूसरे साधन-सम्पन्न व्यक्तियों का होता है। धन से अमरत्व की आशा नहीं की जा सकती।"
मैत्रेयी बोली-"जिसे लेकर मैं अमर नहीं हो सकती, उसका मैं क्या करू ? अमृतत्व का जो साधन आप जानते हैं, वह मुझे बतलाए।"
१. ओं अवीहि भगव इति होपससाद सनत्कुमारं नारवस्त ७ हीवाच यद्धत्य तेन नोपसीद
ततस्त ऊर्ध्व वक्ष्यामीति स होवाच । ऋग्वेदं भगवोऽध्येमि पजुर्वेद ७ सामवेदमार्गणं चतुर्थमितिहासपुराणं पंचमं वेदानां वेदं पित्र्य वं राशि दैनं निधि वाकोवाक्यमेकायनं देवविद्यां ब्रह्मविद्या भूतविद्यानक्षत्रविद्यां सपेदेवजनविद्यामेतद् भगवोऽध्येमि । सोऽहं भगवो मन्त्रविदेवास्मि नात्मविच्छूत ७ ह येव मे भगवदृशैभ्यस्तरति शोकमात्मविदिति सोऽहं भगवः शोचामि तं मा भगवाञ्छोकस्य पार तारयत्विति त थ होवाच यद्वै किञ्चेतदध्यगीष्ठा नामैवैतत् ।
-छान्दोग्योपनिषद्, सप्तम अध्याय, प्रथम खण्ड, १-३ २. मैत्रेयीति होवाच याज्ञवल्क्य उद्यास्यया अरेऽहमस्मात्स्थानादस्मि हन्त तेऽनया
कात्यान्यतं करवाणोति । सा होवाच मैत्रेयी । यन्तु म इयं भगोः सर्वा पृथिवी पित्तन पूर्णा स्यात्कथं तेनाऽ मृता
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