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________________ भाषा और साहित्य ] प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएं [६१ यज्ञ, उनका महत्व, वाजपेय, राजसूय, अश्वमेघ प्रभृति भिन्न-भिन्न यज्ञों में वेद-मन्त्रों का यथास्थान पाठ आदि विषयों का इस वेद में विस्तृत एवं व्यवस्थित विवेचन है। यह गद्यपद्यात्मक है। विशेषतः इसका व्याख्या-भाग गद्यात्मक है। शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद के नाम से दो शाखाए हैं। यद्यपि महाभाष्यकार पतंजलि ने इसकी एक सौ एक शाखाओं की चर्चा की है, पर, वे प्रायशः अप्राप्त हैं। शुक्ल यजुर्वेद-वैदिक परम्परा में ऐसी मान्यता है कि सूर्य ने इसे प्रकट किया था । सूर्य ज्योतिर्मय, उज्ज्वल या शुक्ल है; अतः शुक्ल यजुर्वेद नामकरण हो गया। एक कारण और भी बताया जाता है इसमें मन्त्र क्रम-बद्ध तथा स्पष्ट रूप में आकलित हैं । व्यवस्थापन की स्पष्टता या स्वच्छता होने से यह शुक्ल यजुर्वेद कहा गया। इसमें वे मन्त्र समाविष्ट हैं, जिनका वैदिक यज्ञों के सन्दर्भ में उच्चारण किया जाना अपेक्षित है। शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाए-काण्व और माध्यन्दिन प्राप्त हैं। ___ कृष्ण यजुर्वेद-शुक्ल यजुर्वेद में मन्त्रों की अवस्थिति में क्रम-बद्धता व स्पष्टता है; वहां कृष्ण यजुर्वेद इसके प्रतिरूप है। वहां मन्त्र यथावत् क्रम के साथ नहीं दिये गये हैं। स्यात् इसी अस्पष्टता या अस्वच्छता के कारण उसका नाम कृष्ण यजुर्वेद पड़ गया हो । शुक्ल यजुर्वेद से एक अन्य अन्तर भी है। शुक्ल यजुर्वेद की तरह भिन्न-भिन्न यज्ञों के सन्दर्भ में उच्चारणीय मन्त्र को इसमें हैं ही, साथ-ही-साथ यज्ञों के सम्बन्ध में विचार-चर्चा भी है। यह इसका वैशिष्ट्य है। कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाए हैं—काठक-संहिता, कापिष्ठलकठ संहिता, मैत्रायणी संहिता, तैत्तिरीय संहिता। वेद-भाष्यकार महीधर ने यजुर्वेद-भाष्य की भूमिका में इस प्रसंग में बड़ी रोचक व अद्भुत कथा लिखी है । उसके अनुसार महर्षि व्यास के शिष्य वैशम्पायन ने याज्ञवल्क्य आदि अपने शिष्यों को चारों वेद पढ़ाये। एक दिन कोई ऐसी घटना घटी। पैशम्पायन याज्ञवल्क्य पर बहुत ऋद्ध हुए और बोले-“तूने जो कुछ मुझसे पढ़ा है, उसे छोड़ दे।" याज्ञवल्क्य भी यह सुनकर क्रोधाविष्ट हो गये। उन्होंने जो कुछ पढ़ा था, उसे उगल दिया । गुरु (वैशम्पायन ) की आज्ञा से अन्य शिष्यों ने तित्तिर बन कर उसे खा लिया। यही उद्वान्त (वमन किया हुषा ) -ज्ञान तैत्तिरीय संहिता है। कतिपय भारतीय विद्वानों का विश्वास है कि रावण वेदों का बड़ा विद्वान् था। उसने वेद-भाष्य रचा। उसके साथ मिला हुआ यजुर्वेद का भाग कृष्ण या काला यजुर्वेद कहलाया। सामवेद सामवेद संगीत-प्रधान है। इसमें अधिकांशतः ऋग्वेद के मन्त्र संगृहित हैं। इसमें स्वतन्त्र मन्त्र बहुत कम हैं, केवल पचहत्तर हैं। इसका संकलन यज्ञों में किये जाने वाले ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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