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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन । खण्ड : २
वैदिक वाङमय भारत की आर्य-परिवारीय भाषाओं के उपलब्ध साहित्य में वेद सर्वाधिक प्राचीन माने गये हैं। 'वेद' शब्द विद् धातु से बना है, जिसका अर्थ ज्ञान है। वेदों के सुप्रसिद्ध भाष्यकार सायण ने तैत्तिरीय संहिता में वेद का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है : इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेदः अर्थात् जो इष्ट-प्राप्ति और अनिष्ट निवृत्ति का अलौकिक उपाय ज्ञापित करता है, वह ग्रन्थ वेद है। वे संख्या में चार हैं। उन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है-कर्म-काण्ड और ज्ञान-काण्ड । कर्म-काण्ड में संहिता-भाग, ब्राह्मण-ग्रन्थों और आरण्यक-ग्रन्थों का समावेश है तथा ज्ञान-काण्ड में उपनिषदों का । इनका विशेष विश्लेषण आगे किया जाएगा।
बग्वेद
वैदिक वाङमय में प्राचीनता की दृष्टि से ऋग्वेद का पहला स्थान है। इसकी भाषा, रचना, शेली आदि से यह प्रकट है। इसमें जो भाषा व्यवहृत हुई है, वह भारोपीय भाषापरिवार के उपलब्ध साहित्य में सबसे अधिक पुरातन भाषा का उदाहरण है। इसकी रचना पद्यों से हुई है, जिन्हें मन्त्र, ऋक् या ऋचा कहा जाता है। वहां गायत्री, अनुष्टुप्, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है। इनमें अधिकांश चार चरणों के छन्द हैं, कुछ तीन चरणों के भी। अनेक मन्त्र प्रार्थनापरक हैं। उनके अतिरिक्त यज्ञ और दार्शनिक भाव से सम्बद्ध मन्त्र भी हैं।
ऋग्वेद दश भागों में विभक्त है । वे 'मण्डल' कहे जाते हैं। विभाजन का एक और क्रम भी है, जो आठ भागों में सन्निहित है। इसके प्रत्येक भाग की 'अष्टक' संज्ञा है। अधिक प्रचलन इसी का है। बताया जाता है कि प्रारम्भ में ऋग्वेद की पांच शाखाए थीं-१-शाकल, २-वाकल, ३-आश्वलायन, ४-शांख्यायन तथा ५-माण्डूकेय। इस समय केवल शाकल शाखा ही प्राप्त है।
पाश्चात्य विद्वानों का अभिमत है कि समग्र ऋग्वेद की रचना किसी एक ही स्थान पस नहीं हुई। उनके अनुसार ऋग्वेद के द्वितीय मण्डल से सप्तम मण्डल तक का भाग पंचनद प्रदेश में रचा गया। अवशिष्ट भाग अर्थात् प्रथम, अष्टम, नवम तथा दशम मण्डल उनके पूर्व की ओर आगे बढ़ जाने के बाद बने। इसका यह कारण बताया जाता है कि प्रथम बार में बने भाग में गंगा नदी, शेस और चावल का उल्लेख नहीं है, क्योंकि पंचनद में इनका अस्तित्व नहीं था। तत्पश्चात् बने भाग में इनका उल्लेख है; क्योंकि पूर्व में ये सब थे। यजुर्वेद
यजुर्वेद में कुछ ऋग्वेद के मन्त्र हैं और कुछ दूसरे । मार्यों द्वारा किये जाने वाले विभिन्न
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