________________
१२ ]
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ ऋग्वेद और अवेस्तों की भाषा का साहश्य
ऋग्वेव जिस भाषा में लिखा गया, वह आर्यों की बोलियों का एक परिनिष्ठित साहित्यिक रूप था। भाषा की दृष्टि से ऋग्वेद और अवेस्ता का काफी सादृश्य है, जो तुलनात्मक रूप में उपस्थित किये गये अग्रांकित शब्दों से स्पष्ट हैवैदिक संस्कृत मवेस्ता (ईरानी)
वैदिक संस्कृत रानी अवेसा
अन्य
अनु असि
अनु अहि मस्ति
असुर
अहर
भस्थि
आपः
भप
ओजस्
ओजः
कफम्
शधात
यतूम् कफम् खतुश् जानू ददामि
गाथा
जानुः
क्षत्रात गाथा जंधा दहति धारयत्
जंगा
दज़हति
दरेगम्
ददामि दीर्घम् नभस् भरति
दारयत पुश्र बवइति
भवति
भूमि
नवह বহুবি बूमि यज़ बहिश्त
ब्राता
भ्राता रिणक्ति
यज पसिष्ट
हरिनस्ति चिस्प
विश्व
सखा
सप्त
ससाह
हफता
सिन्ध
हिन्दु
डा० बटकृष्ण घोष द्वारा अवेस्ती और संस्कृत का नेकट्य प्रकट करने की दृष्टि से किया गया अवेस्ता की यस्ना १०८ का संस्कृत रूपान्तर यहां और उद्धत किया जा रहा है :
अवेस्ता : यो यथा पुटरम् उनम् होभम् बन्दएँ ता मश्यो। . संस्कृत : यो यथा पुत्रं तरुणंसोमं वन्देत मत्यः । अवेस्ता : फा आर्ध्या तनुब्र्या होमो बीसइते बए शजाइ । संस्कृत : प्र आम्मस्तनूभ्यः सोमो विशते भेषजाय ।
सूक्षमता से देखने पर यह स्पष्ट आभास होगा कि दोनों भाषाओं में ध्वनि, शब्द, रूप, वाक्य-रचना आदि की दृष्टि से बहुत कुछ समानता है।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org