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________________ भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह भारोपीय को मूल ध्वनियां भाषा परिवर्तनशील है। परिवर्तन का ही दूसरा नाम विकास है। भारोपीय की मूल ध्वनियां पेदिक संस्कृत तक आते - आते कितनी परिवर्तित हो गयी थीं, इसे स्पष्ट करने के लिए दोनों फा तुलनात्मक विवेचन आवश्यक है। विद्वानों ने मूल भारोपीय भाषा की ध्वनियों को निम्नांकित रूप में अनुमानित किया है : कवर्ग-(१) क, ख, ग, घ, (२) क., ख., ग., घ. (३) क्व् , ख्व, ग्व् , . __ भारोपीय में कवर्ग तोन प्रकार से था। प्रथम कवर्ग को कुछ विद्वान् सामान्य कवर्ग मानते हैं। पर, कुछ विद्वान् इसे तालु की गौण सहायता से उच्चरित किया जाने वाला मानते हैं। तदनुसार इसका क्य, ख्य, ग्य और ध्य के रूप में उच्चारण होता था। डा. चटर्जी का मत इस सम्बन्ध में भिन्न है। वे इसे तालव्य नहीं मानते, पुरः कण्ठ्य (Advanced Velar) मानते हैं। दूसरा कवर्ग अरबी के क., ख. आदि के समान कहा जा सकता है। यूरोपीय विद्वान् कण्ठ्य (velaa) कहते हैं, परन्तु डा० चटर्जी की मान्यता के अनुसार यह पश्चकण्ट्य ( Back Velar ) अथवा अलिजिह वोय ( Uvular ) है। तीसरे प्रकार के कवर्ग के उच्चारण में ओष्ठ की भी गौण सहायता ली जाती थी। इसके उच्चारण में कवर्ग की वास्तविक ध्वनि मुख्य थी ओर व ध्वनि बहुत ही अल्प और गौण थी। डा० चटर्जी प्रभृति कतिपय भाषा - वैज्ञानिक उक्त तीन प्रकार के कवर्गों के क् , ख, ग, घ, वर्गों के साथ तीन प्रकार के ङ, की भी कल्पना करते हैं, परन्तु, बहुत से विद्वानों की मान्यता है कि 'न्' ध्वनि हो इन भिन्न-भिन्न कवर्गों के साथ इनके अनुसार रूप धारण कर लेती थी। तवर्ग-त्, थ्, द, धू पवर्ग-प, फ, ब, भू ऊष्म-स् ऊष्म स् यदि दो स्वरों के बीच आता तो उसका उच्चारण सघोष -ज़ होता । अन्तःस्थ व्यंजन : यू , , ल , व् , न, म , अन्तःस्थ स्वर : इ, ऋ, ल, उ, न, म १. वाह्यप्रयत्नस्त्वेकादशधा। विवारः संवारः श्वासो नादो घोषोऽघोषोऽल्पप्राणो महा प्राण उदात्तोऽनुदात्तः स्वरितश्चेति। खरोः विवाराः श्वासा अधोषाश्च । हशः संवारा नादा घोषाश्च । वर्गाणां प्रथमतृतीयपंचमा यणश्चाल्पप्राणाः। वर्गाणां द्वितीय-चतुर्थों शलश्च महाप्राणाः। -अष्टाध्यायी, सूत्र ११११९ की वृत्ति For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_05 www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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