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६८] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ के सम्बन्ध में उनका जो मन्तव्य है, विश्व के अनेक प्रौढ़ विद्वानों तथा अनुसन्धाताओं के विचारानुसार भाषा-विज्ञान तथा मानव के विकास-अभियान आदि के सूक्ष्म परिशीलन से संगत नहीं जान पड़ता। हो सकता है, इस मत के प्रतिपादन में थोड़ा-बहुत भावुकता का भी स्थान रहा हो। भारत का चिर अतीत निःसन्देह संस्कृति, दर्शन, साहित्य, कला, निर्माण आदि अनेक दृष्टियों से उन्नयन और विकास के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा था। पर, उसका अतिशयित चित्र, जो तथ्यान्वेषण में भी बाधक हो, कतिपय प्राचीनता-प्रिय भारतीयों के मस्तिष्क पर आच्छन्न है, क्या उसका प्रभाव भी इस मान्यता पर नहीं आ पाया, यह चिन्तन और समीक्षा-योग्य है।
कुछ सूक्ष्मता से उन पहलुओं का भी परीक्षण करें, जिनसे उपयुक्त मान्यता की प्रामाणिकता व्याहत होती है । यदि भारोपीय परिवार की भाषाओं के विस्तार पर दृष्टिपात करें, तो यह स्पष्टतया परिज्ञात होगा कि उनका विस्तार भारतवर्ष के परिपार्श्व में ही नहीं, अपितु उनमें से अधिकांश या तो यूरोप में फैली हुई हैं या एशिया, यूरोप के मिलने के स्थान के आस-पास । ऐसी स्थिति में क्या यह कल्पना करें कि भारतवर्ष से आर्य (विरोस) पश्चिम की ओर बढ़ते गये, अनेक भाषाएं बनती गयीं। यह कल्पना युक्ति-युक्त और न्याय-संगत प्रतीत नहीं होती। भारत से इतनी दूर तक जाने का आर्यों का कोई उद्देश्य होना चाहिए। भारतवर्ष की भूमि बहुत उर रही है। उस समय जन-संख्या भी कम थी। जीवन-निर्वाह की कोई समस्या नहीं थी। फिर यूरोप के दूर देशों तक चल कर लोग गये, वहां आबाद हुए, समझ में आने योग्य नहीं है। इसके अतिरिक्त प्राचीन वाङमय में भारतीयों के इस प्रकार के अभियान या बहिर्गमन का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। ऐसी स्थिति में क्या यह अधिक सम्भव नहीं लगता कि कोई एक समुदाय पश्चिम से पूर्व की ओर चला हो और चलते-चलते कुछ ठहरावों के बाद, जिनमें उसके अनेक साथी उन ठहराधों के स्थानों पर आबाद भी हो गये हों, भारतवर्ष के उत्तर-पश्चिम भाग में पहुंचा हो, वहां बस गया हो । उनमें से कतिपय कुछ समय पश्चात् आसपास की दूसरी दिशाओं में भी चले गये
हों।
भारतवर्ष में भारोपीय, द्रविड़, आग्नेय आदि परिवारों की भाषाए प्रचलित हैं। उत्तर भारत में पंजाब से लेकर असम तक तथा भारत के मध्यवर्ती भाग में पंजाबी, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, मैथिली, भोजपुरी, बंगला, उड़िया, आसामी, मराठी आदि भारोपीय परिवार की भाषाएं बोली जाती है। बंगाल, बिहार व मध्यप्रदेश के कुछ भू-भागों, खासीजयन्ती की पहाड़ियों तथा तमिलनाडु के गंजाम जिले में मुडा ( कनावरी, खेरवारी, कुकू', खड़िया, जुआंग, शाबर, गदवा आदि ) भाषाओं का प्रचलन है, जो आग्नेय परिवार की भाषाए हैं। दक्षिण में आन्ध्र, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि के अतिरिक्त लक्षद्वीप
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