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________________ भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह [६७ वामन शिवराम आप्टे ने अपने कोश' में सरस्वती का मरुस्थल की रेत में लुप्त होना लिखा है। ___ दृषद्वती के सम्बन्ध में एम० मोनियर विलियम्स' का उल्लेख है कि वह सरस्वती में मिलती है। ___ आप्टे इस नदी के विषय में कहते हैं : "एक नदी का नाम जो आर्यावर्त की पूर्व सीमा बनाती है तथा सरस्वती नदी में मिलती है।"3 ___ एम० मोनियर विलियम्स ने सरस्वती की जो 'सुरसूती' के नाम से पहचान कराई है, वह चिन्त्य प्रतीत होती है। राजस्थान में घग्घर नाम से प्रसिद्ध वर्षा ऋतु में प्रायः बहने बाली नदी सरस्वती सम्भावित है। ___ उपयुक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि सरस्वती के तट पर अति प्राचीन काल में कभी आर्यों का आवास था। पर, इससे यह सिद्ध नहीं किया जा सकता कि आर्यों का यही मूल स्थान था। राजस्थान के गंगानगर जिले के कालीबंगा, रंगमहल आदि स्थानों की खुदाई और वहां से प्राप्त वस्तुओं से पुरातत्त्व के विद्वानों और अनुसन्धित्सुओं को यह प्रेरणा अवश्य लेनी चाहिए कि वे सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में गहन अध्ययन और अनुशीलन करें, जो यहां विशेष रूप से परिव्याप्त थी। सम्भव है, ऐसा होने पर अनेक नये तथ्य प्रकाश में आयें, प्राक् आयंकालीन संस्कृति के सम्बन्ध में भी कुछ इगित प्राप्त हों। ___ कुछ भारतीय विद्वान्, जिनमें डा० सम्पूर्णानन्द का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है; वेदों, पुराणों तथा तत्सम्बद्ध साहित्य के आधार पर उपयुक्त मत से मिलता-जुलता मत प्रकट करते हैं। किसी निश्चित स्थान का इत्थंभूत संकेत तो वे नहीं करते, पर, उनका प्रबल तर्क यह है कि जब प्राचीन भारतीय आर्य-साहित्य में आर्यों के बाहर से आने का कहीं भी उल्लेख नहीं है, तब क्यों नहीं उन्हें भारतवर्ष के ही मूल निवासी माना जाए। समीक्षा प्रस्तुत मत के उभावक और पोषक व्यक्तियों में उच्च कोटि के विद्वान् है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि उन्होंने भारतीय वाङमय का गम्भीर अनुशीलन किया है, पर, आर्यों के मूल स्थान १. आप्टे : संस्कृत-हिन्दी-कोश , पृ० १०८७ 2. Name of a river which flows into the Saraswati. -Sanskrit-English Dictionary,P.492. ३. आप्टे : संस्कृत-हिन्दी-कोश , पृ० ४७१ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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