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________________ ५६ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : २ तमिल के 'कोवेल = मन्दिर शब्द के रूपों का उदाहरण और प्रस्तुत किया जाता है। उसके रूप इस प्रकार चलेंगे : कर्ता एकवचन कोवेल कोवेल-एई कोवेल-उदीय बहुवचन कोवेल-गल कोवेल -गल-एई कोवेल-गल-उदीय कर्म सम्बन्ध तमिल में 'गल' बहुवचन द्योतक है। एकवचन से बहुवचन बनाने के लिए उसे एकवचन के आगे जोड़ दिया जाता है। तमिल में एई कर्म कारक का तथा उदीय सम्बन्ध कारक का चिह्न ( विभक्ति) है। एकवचन से जिस कारक को उपस्थित करना हो, उसके अनुसार ये विभक्तियां उसके आगे जोड़ दी जाती हैं। यदि बहुवचन बोधित करना हो, तो बहुवचन द्योतक गल, जो एकवचन-सूचक शब्द के अन्त में जुड़ा है, के अनन्तर ये कारक-चिह्न जोड़ दिये जाते हैं। ऊपर उल्लिखित 'कोवेल' शब्द के रूपों से यह प्रकट है। अश्लिष्ट योगात्मकता का स्वरूप इससे और स्पष्ट हो जाता है । श्लिष्ट योगात्मक भाषाएँ . प्रश्लिष्ट योगात्मक भाषाओं के विवेचन के प्रसंग में यह स्पष्ट हुआ कि सम्बन्ध तत्व अर्थ-तव में इस प्रकार लीन हो जाता है कि बाह्य दृष्टि से उसकी प्रतीति नहीं होती। श्लिष्ट योगात्मक भाषाओं में भी अर्थ-तत्व और सम्बन्ध-तत्व का योग होता है, अर्थ-तत्व में कुछ विकार और परिवर्तन भी आता है, पर, फिर भी सम्बन्ध-तत्व प्रश्लिष्ट की तरह अर्थ-तत्व में लीन नहीं होता। उसका स्पष्ट रूप तथा अर्थ-तत्व और सम्बन्ध-तत्व का भेद स्पष्टतया तो नहीं दीखता, पर, सम्बन्ध-तत्व की कुछ झलक या आभास अवश्य मिलता है । जैसे-कम से कर्मण्य', कण्ठ से कण्ठ्य , संवत्सर से सांवत्सरिक, पाणिनि से पाणिनीय, धर्म से धार्मिक, दधि से दाधिक, धनुष से धानुष्क', निकट से नकटिक, अक्ष से १. कर्मणि साधुः कर्मण्यः । तत्र साधुः। -पाणिनीय अष्टाध्यायी, ४।४।९८ २. शरीरावयवाच्च । वही, ४॥३॥५५ ३. कालाठञ् ।-वही, ४॥३॥११ ४. पाणिनिना प्रोक्तम्-पाणिनीयम् । तेन प्रोक्तम् । -वही, ४।३।१०१ ५. धर्म चरति । वही, ४।४।४१ ६. बध्ना संसृष्टम्-दाधिकम् । संसृष्टे ।-वही, ४।४।२२ ७. धनुः प्रहरणमस्य-धानुष्कः। प्रहरणम् ।-वही, ४१४१५७ ८. निकटे वसति-नैकटिकः। निकटे वसति ।-वही, ४१४७३ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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