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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:१
डाला।
एक बार भगवान् महावीर कालाय सन्निवेश में आए। सन्निवेश के बाहर एक खण्डहर था। भगवान् महावीर सायंकाल उसी खण्डहर में ध्यानस्थ हुए। गोशालक भी द्वार के पास वहीं रहा । सन्निवेश के अधिपति का पुत्र सिंह विद्युन्मती दासी को साथ लिये अकस्मात उसी खण्डहर में आया। वह कामेच्छु था। उसने आवाज दी-“कोई यहाँ है ?" भगवान् ध्यानस्थ थे। गोशालक बोला नहीं। उसने पूर्ण विजनता समझ कर वहीं मनोज्ञ काम-क्रीड़ा की। जब वे दोनों वापस जाने लगे, कामातुर गोशालक ने विद्युन्मती का हाथ पकड़ लिया। गोशालक की उस हरकत से सिंह बहुत क्रोधित हुआ और उसने गोशालक की पूरी खबर ली।
__ भगवान् महावीर कुमाराक सन्निवेश आये। चम्पकरमणीय उद्यान में ध्यानस्थ हुये। मध्याह्न में गोशालक ने भगवान् से कहा- "भगवन् ! बस्ती में भिक्षा के लिए चलें।" भगवान् ने कहा-"आज मेरा उपवास है। मैं भिक्षा के लिए नहीं जाऊँगा।"
गोशालक बस्ती में आया कूपनय नामक एक धनाढ्य कुम्भकार की शाला में पार्श्वनाथपरम्परा के आचार्य मुनिचन्द्र अपने शिष्यों सहित ठहरे हुए थे। गोशालक उन्हें देख कर आश्चर्य-मुग्ध हुआ। उसके मन में आया, ये कैसे साधु हैं, जो रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं, पात्र आदि अनेक उपकरण रखते हैं। गोशालक ने पूछा-"आप कौन से साधु हैं ?"
उत्तर मिला-निर्ग्रन्थ हैं और पार्श्वनाथ के अनुयायी हैं ?"
गोशालक ने पुनः कहा-"यह कैसी निर्ग्रन्थता ? सब कुछ तो संगृहीत पड़ा है ? मेरे गुरु और मैं ही सच्चे निर्ग्रन्थ हैं। तुम सबने तो आजीविका चलाने के लिए ढोंग रच रखा है।"
साधुओं ने प्रत्युत्तर में कहा-"जैसा तू है, वैसे ही तेरे धर्माचार्य होंगे ?" ।
क्रोधित गोशालक ने कहा-"तुम मेरे धर्माचार्य की अवज्ञा करते हो। मैं श्राप देता हूँ कि मेरे गुरु के तप-तेज से तुम्हारा यह उपाश्रय भस्म हो जाए।" गोशालक ने अनेक बार ऐसा कहा, पर, कुछ भी नहीं हुआ। पार्वानुग साधुओं ने कहा-"क्यों व्यर्थ कष्ट करते हो ? न कुछ जलने वाला है और न कुछ मिलने वाला है।" सम्भ्रान्त-सा गोशालक वहां से हट कर भगवान महावीर के पास आया और कहने लगा-"आज परिग्रही साधुओं से विवाद हो गया। मैंने श्राप दिया, पर, उनका उपाश्रय नहीं जला। भगवन् ! ऐसा क्यों ?" भगवान् महावीर ने कहा-“गोशालक ! तुम्हारी धारणा अयथार्थ है। जो वे कर रहे हैं, वह सब विहित है । तुम्हारा श्राप उन पर नहीं चलेगा।
एक बार भगवान् महावीर चौराक सन्निवेश आए। गोशालक भी साथ था। गांव में चोरों का बहुत भय था। स्थान-स्थान पर पहरेदार खड़े रहते थे। गांव में जाते ही पहरेदारों
१. आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरिवृत्ति, पूर्वभाग, गा० ४७५ पत्र संख्या २७७-१-२; ___ आवश्यक चूर्णि, प्रथम भाग। २. आवश्यक नियुक्ति, मलय गिरिवृत्ति, पूर्वभाग, गा० ४७६, पत्र संख्या २७८-१; ___ आवश्यक चूणि, पूर्वभाग, पत्र सं० २८४ । ३. आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरिवृत्ति, पूर्वभाग, गा० ४७७, पत्र सं० २७६-१;
आवश्यक चूर्णि, पूर्वभाग, पत्र २८५।
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