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________________ आगम और त्रिपटिक : एक अनुशीलन [खण्ड : महावीर ने अपने साधुओं के समक्ष कुण्डकोलिक के इस चर्चावाद की प्रशंसा की। शकडालपुत्र शकडालपुत्र भगवान महावीर के प्रमुख दस श्रावकों में से एक था। पहले वह आजीवक मत का अनुयायी था और बाद में महावीर का श्रमणोपासक बना। उवासगदसाओ में इस सम्बन्ध का सारा विवरण उपलब्ध होता है। गोशालक की मान्यता को समझने के लिए भी वह एक मौलिक प्रकरण है। पोलासपुर नगर में शकडाल पुत्र नामक कुम्भकार रहता था। उसके पास तीन करोड़ स्वण मुद्राएं व दस हजार गौएं थीं। उसकी पत्नी का नाम अग्निमित्रा था। भंड-निर्माण का उनके बहुत बड़ा उद्योग था। वह आजीवक सम्प्रदाय के नायक गोशालक का अनुयायी था। एक दिन अशोक वाटिका में वह आजीवक मत के अनुसार व्रत साधना कर रहा था। उस समय एक देवता प्रकट हआ और बोला-“देवानप्रिय ! कल यहाँ 'महामाहण' आने वाला है। वह जिन है और त्रिलोक-पूज्य है। तुम उसे प्रणाम करना और उसकी सेवा करना।" शकडालपुत्र सोचने लगा-"मेरे धर्माचार्य मंखलिपुत्र गोशालक ही 'महामाहण' और त्रिलोक-पूज्य हैं । वे ही कल यहां आएंगे । मैं उनकी सेवा करूंगा।" दूसरे दिन भगवान् महावीर श्रमण-समुदाय के साथ वहाँ पधारे। सहस्रों लोग दर्शन और व्याख्यान सुनने के लिए एकत्रित हुए। शकडालपुत्र के मन में भी कौतूहल और जिज्ञासा उत्पन्न हुई। वह भी भगवान महावीर को वन्दन करने के लिए आया। भगवान् महावीर ने कहा-'कल किसी देव ने आकर किसी 'महामाहण' के आने की जो सूचना तुझे दी थी, वह गोशालक के लिए नहीं थी।" शकडालपुत्र इस रहस्योद्घाटन से बहुत प्रभावित हुआ और उसने अपनी दुकानों में निवास करने के लिए भगवान् महावीर को आमन्त्रित किया । भगवान् वहां आए और रहने लगे। शकडालपुत्र नितान्त नियतिवादी था । एक दिन जब कि मिट्टी के बर्तनों को सुखाने का काम चल रहा था, भगवान् महावीर ने शक डालपुत्र से कहा- "देवानप्रिय ! क्या ये सारे बर्तन बिना प्रयत्न किये ही तैयार हुए हैं ?" ... शकडालपुत्र-'ये प्रयत्न से नहीं बने हैं। जो कुछ होता है, वह नियतिवश ही होता है।" भगवान् - "यदि कोई इन बर्तनों को फोड़ डाले या अग्निमित्रा के साथ सहवास करे तुम क्या करोगे ?" शकडालपुत्र-“मैं उसे शाप दूंगा, उस पर प्रहार करूंगा और उसे मार डालूंगा।" भगवान् -यदि यह तथ्य है-जो कुछ होता है, वह नियति वश ही होता है ; तो ऐसा करने के लिए तुम क्यों उद्यत होते हो ?" शकडालपुत्र को सम्यक् ज्ञान हुआ और उसने अणुव्रत रूप गृहस्थ-धर्म को स्वीकार किया। भगवान महावीर वहां से विहार कर गए। गोशालक शकडालपुत्र को पुनः अपने धर्म में आरूढ़ करने के लिए एक दिन उसके घर आया। शकडालपुत्र ने उसे किचित् भी सम्मान नहीं दिया। गोशालक ने अन्य मार्ग न १. उवासगदसाओ, अ०६ के आधार पर। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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