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इतिहास और परम्परा गोशालक
२७ सागरोपम की स्थिति में देव रूप से उत्पन्न हुआ है । वह वहाँ से च्युत हो, महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध तथा विमुक्त होगा। इसी तरह सुनक्षत्र अनगार भी अच्युत कल्प में बाईस सागरोपम की स्थिति में देव रूप से उत्पन्न हुआ है । वहाँ से च्युत होकर वह भी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और वहाँ सर्व कर्म-क्षय कर विमुक्त होगा।"
गौतम स्वामी ने फिर पूछा- "भगवन् ! आपका कुशिष्य गोशालक मृत्यु प्राप्त कर कहाँ उत्पन्न हुआ है ?"
भगवान् महावीर ने उत्तर दिया- 'वह अच्युत कल्प में बाईस सागरोपम की स्थिति वाला देव हुआ है। वहाँ से च्युत हो, अनेक भव-भवान्तरों में भ्रमण करता रहेगा। अन्त में उसे सम्यग्दृष्टि प्राप्त होगी। दृढ़प्रतिज्ञ मुनि के रूप में केवली होकर सर्व दु:खों का अन्त करेगा।
कुण्डकोलिक और आजीवक देव
___ गोशालक की नियतिवादी मान्यता पर कुण्डकोलिक श्रमणोपासक का घटना-प्रसंग बहुत ही सरस और ज्ञानवर्द्धक है । कण्डकोलिक कम्पिलपुर नगर का धनाढ्य गृहपति था। वह भगवान् महावीर का उपासक था। एक दिन मध्याह्न के समय वह अपनी अशोक वाटिका में आया। शिलापट्ट पर आसीन हुआ। अपना उत्तरीय उतारा और एक ओर रख दिया। नामांकित मुद्रिका उतारी और उत्तरीय के पास रख दी। भगवान् महावीर द्वारा बताई गई धर्म-प्रज्ञप्ति का आचरण करने लगा। अकस्मात् एक देव आया। उत्तरीय और मुद्रिका को उठाकर किंकिणीनाद के साथ आकाश में प्रकट हुआ। आकाश में खड़े ही उसने कुण्डकोलिक के साथ चर्चा प्रारम्भ की।
देव-“कुण्डकोलिक ! मंखलिपुत्र गोशालक की धर्म-प्रज्ञप्ति प्रशस्त है ; क्योंकि उसमें उत्थान (उत्साह), कर्म, बल, वीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम आदि कुछ नहीं हैं। सब स्वभाव नियत हैं। महावीर की धर्म-प्रज्ञप्ति अच्छी नहीं है ; क्योंकि उसमें उत्थान, कर्म आदि सब माने गए हैं और सब स्वभाव अनियत हैं।"
कुण्डकोलिक-"देव ! यदि ऐसा है, तो बताओ न, तुम्हें यह देव-ऋद्धि कैसे मिली? तुम्हारे उत्थान, बल आदि इसके कारण हैं या यह नियतिवश ही मिल गई ?"
देव-कुण्डकोलिक ! मैं तो मानता हूं, यह देव-ऋद्धि मुझे यों ही नियतिवश मिली, है। इसका कारण कोई पुरुषाकार या पराक्रम नहीं है।"
कुण्डकोलिक-"देव ! ऐसा है, तो अन्य सभी को यह देव-ऋद्धि क्यों नहीं मिली, तुम्हें ही क्यों मिली ? तात्पर्य यह कि अपने उत्थान, बल आदि से ही व्यक्ति सब कुछ पाता है। तुम्हारा यह कथन मिथ्या है कि गोशालक की धर्म-प्रज्ञप्ति अच्छी है और महावीर की अच्छी नहीं है।"
देव यह सब सुनकर अपने सिद्धान्त में संभ्रान्त हआ और कुण्डकोलिक का उत्तरीय और मुद्रिका यथास्थान रख कर अपने गन्तव्य की ओर चला गया। प्रसंगान्तर से भग
१. भगवती सूत्र (हिन्दी अनुवाद) पृ०६२६-६५२ के आधार पर । अनुवादक-मदन
कुमार मेहता, प्र० श्रुत-प्रकाशन मन्दिर, कलकत्ता।
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