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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड :१ गोशालक को नाचते, गाते तथा मद्यपान करते देखकर वह अत्यन्त लज्जित हुआ और पुनः लौटने लगा। अन्य आजीवक स्थविरों ने उसे देखा तथा बुलवाया। उन्होंने उसे उपर्युक्त आठ चरम वस्तुओं से परिचित किया तथा कहा- "तुम जाओ और अपने प्रश्न का समाधान करो।" स्थविरों के संकेत से गोशालक ने गुठली एक ओर रख दी तथा अयंपुल से बाला"अयंपुल ! तुम्हें मध्य रात्रि में हल्ला का आकार जानने की इच्छा उत्पन्न हुई, परन्तु, तुम योग्य समाधान नहीं कर पाए ; अत: मेरे पास समाधान के लिए आए थे। मेरी यह स्थिति देखकर तुम लज्जित होकर लौटने लगे, पर यह तुम्हारी भूल है। मेरे हाथ में यह कच्चा आम नहीं, परन्तु, आम की छाल है। इसका पीना निर्वाण-समय में आवश्यक है । नृत्य-गीतादि भी निर्वाण-समय की चरम वस्तुएँ हैं; अतः तू भी वीणा बजा।" गोशालकका पश्चात्ताप अयंपुल अपने प्रश्न का समाधान कर लौट गया। अपना मृत्यु-समय निकट जान कर गोशालक ने आजीवक स्थविरों को बुलाया। उसने कहा--"जब मैं मर जाऊं, मेरी देह को सुगन्धित पानी से नहलाना, सुगन्धित गेरुक वस्त्र से पोंछना, गोशीर्ष चन्दन का विलेपन करना, बहुमूल्य श्वेत वस्त्र पहिनाना तथा सर्वालंकारों से विभूषित करना । एक हजार पुरुषों द्वारा उठाई जा सके, ऐसी शिविका में बैठाकर श्रावस्ती के मध्य में इस प्रकार घोषणा करते हए ले जाना-... 'चौबीसवें चरम तीर्थङ्कर मंखलिपुत्र गोशालक जिन हुए, सिद्ध हुए, विमुक्त हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए है।' इस प्रकार महोत्सव पूर्वक अन्तिम क्रिया करना।" सातवीं रात्रि व्यतीत होने पर गोशालक का मिथ्यात्व दूर हुआ। उसके मन में विचार उत्पन्न हुआ---"जिन न होते हुए भी मैं अपने को जिन घोषित कर रहा हूं। मैंने श्रमणों का घात किया है और आचार्य से विद्वेश किया है। श्रमण भगवान् महावीर ही सच्चे जिन हैं।" उसने स्थविरों को पुनः बुलाया और उनसे कहा-"स्थविरो! जिन न होते हुए भी मैं अपने को जिन घोषित करता रहा हूं। मैं श्रमण-घाती तथा आचार्य-प्रद्वेषी हूं। श्रमण भगवान् महावीर ही सच्चे जिन हैं। अतः मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरे बाएं पाँव में रस्सी बाँध कर मेरे मुँह में तीन बार थूकना तथा श्रावस्ती के राजमार्गों में 'गोशालक जिन नहीं, परन्तु, महावीर ही जिन हैं'; इस प्रकार उद्घोषणा करते हुए, मेरे शरीर को खींचकर ले जाना।" ऐसा करने के लिए उसने स्थविरों को शपथ भी दिलाई। गोशालक की मृत्य ___गोशालक मृत्यु को प्राप्त हुआ। स्थविरों ने कुम्भकारापण के दरवाजे बन्द कर दिए। उन्होंने वहीं आंगन में श्रावस्ती का चित्र बनाया। गोशालक के कथानुसार सब कार्य किए। उसके मुंह में तीन बार थूका तथा मन्द-मन्द स्वर में बोले-'गोशालक ! जिन नहीं, परन्त, श्रवण भगवान महावीर ही जिन हैं।" स्थविरों ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर गोशालक के प्रथम कथनानुसार उसकी पूजा की और धूम-धाम से मृत देह की ससम्मान अन्त्येष्टि की। ___ गौतम स्वामी ने एक दिन भगवान् महावीर से पूछा-"भगवन् ! सर्वानुभूति अनगार, जिन्हें गोशालक ने भस्म कर दिया था, यहाँ से काल-धर्म को प्राप्त कर कहाँ गए हैं ?" भगवान् महावीर ने उत्तर दिया- "गौतम ! सर्वानुभूति अनगार सहस्रार कल्प में अठारह ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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