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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:१
नहीं है।" सुनते-सुनते गोशालक का चेहरा तमतमा उठा । उसने सर्वानुभूति अनगार को अपनी तेजोलेश्या के एक ही प्रहार से जला कर भस्म कर दिया और पुनः उसी प्रकार अपलाप करने लगा।
___ अयोध्या निवासी सुनक्षत्र अनगार से न रहा गया। वे भी सर्वानुभूति अनगार की तरह उसके पास गए और उसी प्रकार समझाने लगे। गोशालक और क्रोधित हुआ। उसने उन पर भी तेजोलेश्या का प्रहार किया। सुनक्षत्र अनगार तत्काल भगवान् महावीर के पास आए। तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक वन्दन-नमस्कार किया। उन्होंने पांचों महाव्रतों का उच्चारण किया, साधु-सध्वियों से क्षमा-याचना की और आलोचना-प्रतिक्रमणा आदि कर समाधिपूर्वक शरीरोत्सर्ग किया।
भगवान महावीर ने भी गोशालक की सर्वानुभूति अनगार की तरह उसी प्रकार समझाया। गोशालक का क्रोधित होना स्वाभाविक था। उसने सात-आठ कदम पीछे हट कर भगवान् महावीर को भस्म करने के लिए तेजोलेश्या का प्रहार किया। जिस प्रकार वातोत्कालिक वायु (रह-रह कर प्रवाहित होने वाली वायु) पर्वत, स्तूप या दिवाल को विनष्ट नहीं कर सकती, उसी प्रकार वह तेजोलेश्या भी विशेष समर्थ नहीं हुई । पुनः पुनः गमनागमन कर प्रदक्षिणापूर्वक आकाश में ऊपर उछली। वहाँ से गिरी और गोशालक के शरीर को जलाती हुई उसके ही शरीर में प्रविष्ट हो गई।
अपनी ही तेजोलेश्या से पराभूत गोशालक श्रमण भगवान् महावीर से बोला"कश्यप ! मेरी इस तपोजन्य तेजोलेश्या से पराभूत व पीड़ित होकर तू छः मास की अवधि में व छद्मस्थ अवस्था में ही मृत्यु प्राप्त करेगा।"
भगवान महावीर बोले-“गोशालक ! तू ही अपनी तपोजन्य लेश्या से पराभूत होकर तथा पित्तज्वर से पीड़ित हो सात रात्रि के पश्चात् छद्मस्थ अवस्था में ही कालकवलित होगा। मैं तो अभी सोलह वर्ष तक जिन-तीर्थंकर-पर्याय में विचरण करता रहूँगा।"
. कुछ ही क्षणों में यह बात श्रावस्ती में फैल गई। नगर के त्रिक मार्गों, चतुष्पथों और राजमार्गों में सर्वत्र एक ही चर्चा होने लगी लोग कहते थे-"श्रावस्ती के बाहर कोष्ठक चैत्य में दो जिन परस्पर आक्षेप-प्रत्याक्षेप कर रहे हैं। इनमें एक कहता हैं-तू पहले मृत्यु प्राप्त होगा और दूसरा कहता है—पहले तू मृत्यु प्राप्त होगा। इनमें कौन सच्चा है और कौन झूठा !” विज्ञ व प्रतिष्ठित व्यक्ति कहते हैं- "श्रमण भगवान महावीर सत्यवादी हैं और मंखलिपुत्र गोशालक मिथ्यावादी।"
भगवान् महावीर ने निर्ग्रन्थों को बुलाया और कहा-"जिस प्रकार तृण, काष्ठ, पत्र आदि का ढेर अग्नि से जल जाने के पश्चात् नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार गोशालक भी मेरे वध के लिए तेजोलेश्या निकाल कर नष्ट-तेज हो गया है। तुम सहर्ष उसके सामने उसके मत का खण्डन करो, विस्तृत अर्थ पूछो, धर्म-सम्बन्धी प्रतिचोदना करो और प्रश्न, हेतु, व्याकरण और कारण के द्वारा उसे निरुत्तर करो।"
निर्ग्रन्थों ने उसको विविध प्रकार के प्रश्नोत्तरों द्वारा निरुत्तर कर दिया। गोशालक अत्यन्त क्रोधित हुआ, परन्तु, वह निर्ग्रन्थों को तनिक भी कष्ट न पहुंचा सका। अनेक आजीवक स्थविर असन्तुष्ट होकर उसके संघ से पृथक् हो गये और भगवान् महावीर के संघ में सम्मिलित होकर साधना-निरत हो गये।
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