________________
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड १
संजय के विक्षेपवाद में विद्वान् स्याद्वाद का प्रागरूप देखते हैं। विक्षेपवाद का ही विकसित रूप स्याद्वाद बताया जाता है, पर, इस धारणा का कोई मौलिक माधार नहीं है।२ इन मुख्य धर्म और धर्म-नायकों के अतिरिक्त और भी अनेक मतवाद उस युग में प्रचलित थे। जैन परम्परा में वे ३६३ भेद-प्रभेदों में बताये गए हैं तथा बौद्ध परम्परा में केवल ६२ भेदों में।४ अनेक प्रकार के तापसों का वर्णन भी आगम और त्रिपिटक साहित्य में भरपूर मिलता है।
१. धर्मानन्द कोसम्बी, भगवान् बुद्ध, पृ० १८७, साहित्य अकादमी, राजकमल पब्लि
केशन्स, बम्बई, १६५६ । २. इस धारणा का निराकरण देखें, आचार्य श्री तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ में डा० कामताप्रसाद जैन द्वारा लिखित "श्याद्वाद सिद्धान्त की मौलिकता और उपयोगिता" शीर्षक
लेख, अध्याय ४, पृ० ५४-५६ । ३. संकलनात्मक विवरण के लिए देखें, भरत-मुक्ति, पृ० २४६-२४६ । ४. दीध निकाय, ब्रह्मजाल सुत्त, ११ ॥
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org