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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन महासर्वतोभद्र प्रतिमा
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सर्वार्थसिद्ध—देखें, देव । सवाषष लब्धि-तपस्या-विशेष से प्राप्त होने वाली एक दिव्य शक्ति । वर्षा का बरसता
हआ व नदी का बहता हआ पानी और पवन तपस्वी के शरीर से संस्पष्ट होकर रोगनाशक व विष-संहारक हो जाते हैं। विष-मिश्रित पदार्थ यदि उनके पात्र या मंह में आता है, तो वह भी निर्विष हो जाता है। उनकी वाणी की स्मृति भी महाविष के शमन की हेतु बनती है। उनके नख, केश, दाँत आदि शरीरज वस्तुएं भी दिव्य औषधि
का काम करती हैं। सहस्रपाक तेल-नाना औषधियों से भावित सहस्र बार पकाया गया अथवा जिसको पकाने
__ में सहस्र स्वर्ण-मुद्राओं का व्यय हुआ हो। सहस्रराकल्प-आठवाँ स्वर्ग। देखें, देव। सागरोपम (सागर)-पल्योपम की दस कोटि-कोटि से एक सागरोपम (सागर) होता
है । देखें, पल्योपम । सार्मिक-समान धर्मी । सामानिक-सामानिक देव आयु आदि से इन्द्र के समान होते हैं । केवल इनमें इन्द्रत्व
नहीं होता। इन्द्र के लिए सामानिक देव अमात्य, माता-पिता व गुरु आदि की तरह
पूज्य होते हैं। सामायिक चारित्र.. सर्वथा सावद्य-योगों की विरति । सावद्य-पाप-संहित । सिद्ध-कर्मों का निर्मल नाश कर जन्म-मरण से मुक्त होने वाली आत्मा । सिद्धि-सर्व कर्मों की क्षय से प्राप्त होने वाली अवस्था। सुषम-दुःषम-अवसर्पिणी काल का तीसरा आरा, जिसमें सुख के साथ कुछ दुःख भी
होता है।
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