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________________ इतिहास और परम्परा] परिशिष्ट-२ : जैन पारिभाषिक शब्द-कोश ५७३ सुषम-अवसर्पिणी काल का दूसरा आरा, जिसमें पहले आरे से सुख में कुछ न्यूनता आरम्भ होती है। सुषम-सुषम-अवसर्पिणी काल का पहला आरा, जिसमें सब प्रकार के सुख ही सुख होते हैं। सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति-शुक्ल ध्यान का तृतीय चरण, जिसमें सूक्ष्म शरीर योग का आश्रय देकर दूसरे बाकी के योगों का निरोध होता है । देखें, शुक्ल ध्यान । सूत्र-आगम-शास्त्र । सूत्रागम-मूल आगम-शास्त्र । सौधर्म-पहला स्वर्ग । देखें, देव । स्नातक-बोधिसत्त्व । स्थविर–साधना से स्खलित होते हुए साधुओं को पुनः उसमें स्थिर करने वाले । स्थविर तीन प्रकार के होते हैं : १. प्रव्रज्या स्थविर, २. जाति स्थविर और ३. श्रुत स्थविर । १. प्रव्रज्या स्थविर—जिन्हें प्रव्रजित हुए बीस वर्ष हो गये हों। २. जाति स्थविर-जिनका वय साठ वर्ष का हो गया हो। ३. श्रुत स्थविर-जिन्होंने स्थानांग, समवायांग आदि का विधिवत् ज्ञान प्राप्त कर लिया हो। स्थविर कल्पिक–गच्छ में रहते हुए साधना करना। तप और प्रवचन की प्रभावना करना। शिष्यों में ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि गुणों की वृद्धि करना । वृद्धावस्था में जंघाबल क्षीण हो जाने पर आहार और उपधि के दोषों का परिहार करते हुए एक ही स्थान में रहना। स्थावर-हित की प्रवृत्ति और अहित की निवृत्ति के लिए गमन करने में असमर्थ प्राणी। स्थितिपतित-पुत्र-जन्म के अवसर पर कुल क्रम के अनुसार मनाया जाने वाला दस दिन का महोत्सव । स्वादिम-सुपारी, इलायची आदि मुखवास पदार्थ । हल्ला-गोवालिका लता के तृण की समानाकृति का कीट विशेष । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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