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________________ इतिहास और परम्परा ] परिशिष्ट-२ : जैन पारिभाषिक शब्द-कोश ५७१ कायोत्सर्ग किया जाता है । भगवान् महावीर ने इसे ही किया था, ऐसा उल्लेख मिलता है । दूसरी विधि के अनुसार लघु और महा दो भेद होते हैं । १ - लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा — अंकों की स्थापना का वह प्रकार जिसमें सब ओर से समान योग आता है, उसे सर्वतोभद्र कहा जाता है। इस तप का उपवास से आरम्भ होता है और क्रमशः बढ़ते हुए द्वादश भक्त तक पहुँच जाता है । दूसरे क्रम में मध्य के अंक को आदि अंक मान कर चला जाता है और पाँच खण्डों में एक परिपाटी का कालमान इसका क्रम यन्त्र के अनुसार उसे पूरा किया जाता है । आगे यही क्रम चलता है। ३ महीने १० दिन है । चार परिपाटियाँ होती हैं चलता है । । १ Jain Education International 2010_05 ३ ५ २ ४ लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा २ ४ १ ३ ५ ३ ५ २ ४ १ ४ १ ३ ५ २ ५ २ ४ १ ३ २. महा सर्वतोभद्र प्रतिमा- इस तप का आरम्भ उपवास से होता है और क्रमशः बढ़ते हुए षोडश भक्त तक पहुँच जाता है। बढ़ने का इसका क्रम भी सर्वतोभद्र की तरह ही है । अन्तर केवल इतना ही है कि लघु में उत्कृष्ट तप द्वादश भक्त है और इसमें षोडश भक्त । एक परिपाटी का कालमान १ वर्ष १ महीना और १० दिन है । चार परिपाटियां होती हैं। इसका क्रम यन्त्र के अनुसार चलता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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