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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :
उस समय के विभिन्न मतवादों का सुन्दर संकेत देता है । सूयगडांग नियुक्ति के अनुसार आर्द्रककुमार आर्द्रककुमार पुर के राजकुमार थे। उनके पिता ने एक बार अपने मित्र राजा श्रेणिक के लिए बहुमूल्य उपहार भेजे। उस समय आर्द्रक ने भी अभयकुमार के लिए उपहार भेजे। राजगृह से भी उनके बदले में उपहार आये। आर्द्रककुमार के लिये अभयकुमार की ओर से अर्हत-प्रतिमा उपहार स्वरूप भेजी गई। उसे पाकर आर्द्रककुमार प्रतिबुद्ध हुए। जाति-स्मरण ज्ञान के आधार से उन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वहां से भगवान् महावीर की ओर विहार किया। मार्ग में एक-एक कर विभिन्न मतों के अनुयायी मिले । उन्होंने आर्द्रककुमार से धर्म-चर्चाएं की। आर्द्रककुमार मुनि ने भगवान् महावीर के मत का समर्थन करते हुये सभी मतवादों का खण्डन किया । वह सरस चर्चा-प्रसंग इस प्रकार है :
गोशालक-आर्द्रक ! मैं तुम्हें महावीर के विगत जीवन की कथा सुनाता हूँ। वह पहले एकान्त विहारी श्रमण था। अब वह भिक्षु-संघ के साथ धर्मोपदेश करने चला है। इस प्रकार उस अस्थिरात्मा ने अपनी आजीविका चलाने का ढोंग रचा है। उसके वर्ततान के आचरण में और विगत के आचरण में स्पष्ट विरोध है।
आर्द्रक मुनि-भगवान महावीर का एकान्त-भाव अतीत, वर्तमान और भविष्य-इन तीनों कालों में स्थिर रहने वाला है। राग-द्वेष से रहित वे सहस्रों के बीच में रह कर भी एकान्त-साधना कर रहे हैं। जितेन्द्रिय साधु वाणी के गुण-दोषों को समझता हुआ उपदेश दे, इसमें किंचित् भी दोष नहीं है। जो महाव्रत, अणुव्रत, आश्रव, संवर आदि श्रमण-धर्मों को जान कर, विरक्ति को अपना कर, कर्म-बन्धन से दूर रहता है, उसे मैं श्रमण मानता हूँ।
गोशालक-हमारे सिद्धांत के अनुसार कच्चा पानी पीने में, बीजादि धान्य के खाने में, उद्दिष्ट आहार के ग्रहण में तथा स्त्री-संभोग में एकान्त विहारी तपस्वी को कोई पाप नहीं लगता।
आईक मुनि-यदि ऐसा है, तो सभी गृहस्थी श्रमण ही हैं; क्योंकि वे ये सभी कार्य करते हैं। कच्चा पानी पीने वाले, बीज धान्य आदि खाने वाले भिक्षु तो केवल पेट भराई के लिए ही भिक्ष बने हैं। संसार का त्याग करके भी ये मोक्ष को पा सकेंगे, ऐसा मैं नहीं मानता।
गोशालक-ऐसा कह कर तो तुम सभी मतों का तिरस्कार कर रहे हो ।
आर्द्रक मुनि-दूसरे मत वाले अपने मत का बखान करते हैं और दूसरों की निन्दा । वे कहते हैं -- तत्त्व हमें ही मिला है, दूसरों को नहीं। मैं तो मिथ्या मान्यताओं का तिरस्कार करता है, किसी व्यक्ति विशेष का नहीं। जो संयमी किसी स्थावर प्राणी को कष्ट देना नहीं चाहते, वे किसी का तिरस्कार कैसे कर सकते हैं ?
गोशालक-तुम्हारा श्रमण उद्यान-शालाओं में धर्मशालाओं में इसीलिए नहीं ठहरता कि वहाँ अनेक ताकिक पण्डित, अनेक विज्ञ भिक्षु ठहरते हैं। उसे डर है कि वे मुझे कुछ पूछ बैठे और मैं उनका उत्तर न दे सकूँ।
आर्द्रक मुनि-भगवान् महावीर बिना प्रयोजन के कोई कार्य नहीं करते तथा वे
१. डा० ज्योतिप्रसाद जैन ने आर्द्र ककुमार को ईरान के ऐतिहासिक सम्राट् कुरुष (ई०
पू० ५५८-५३०) का पुत्र माना है। (भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० ६७-६८ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९६१)
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