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________________ इतिहास और परम्परा ] २. मक्ख लोगोशाल : नियतिवादी मक्खलीगोशाल संसार-शुद्धिवादी या नियतिवादी थे । वे कहते थे— “प्राणी की अपवित्रता के लिए कोई हेतु नहीं होता, कोई कारण नहीं होता। हेतु के बिना, कारण के बिना प्राणी अपवित्र होते हैं । प्राणी की शुद्धि के लिए कोई हेतु नहीं होता, कोई कारण नहीं होता। हेतु के बिना, कारण के बिना प्राणी शुद्ध होते हैं। अपने सामर्थ्य से कुछ नहीं होता । दूसरे के सामर्थ्य से कुछ नहीं होता । पुरुष के सामर्थ्य से कुछ नहीं होता । किसी में बल नहीं है, बीर्य नहीं है, पुरुष-शक्ति नहीं है, पुरुष-पराक्रम नहीं है । सर्वसत्व, सर्वप्राणी, सर्वभूत, सर्वजीव तो अवश, दुर्बल एवं निर्वीर्य हैं । वे निर्यात संगति एवं स्वभाव के कारण परिणत होते हैं ओर छः में से किसी एक अभिजाति (वर्ग) में रह कर सुख-दुःख का उपभोग करते हैं ।" समसामयिक धर्म - नायक ३. अजित केशकम्बली : उच्छेदवादी - अजित केशकम्बली उच्छेदवादी थे । वे कहते थे – “ दान, यज्ञ और होम में कुछ तथ्य नहीं है। अच्छे बुरे कर्मों का फल और परिणाम नहीं होता। इहलोक, परलोक, मातापिता अथवा औपपातिक ( देवता या नरकवासी) प्राणी नहीं हैं। इहलोक और परलोक का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर दूसरों को देखने वाले दार्शनिक ओर योग्य मार्ग पर चलने वाले श्रमण-ब्राह्मण इस संसार में नहीं हैं। मनुष्य चार भूतों का बना हुआ है । जब वह मरता है, तब उसके अन्दर की पृथ्वी धातु पृथ्वी में, आपी-धातु जल में, तेजी-धातु तेज में और वायुधातु वायु में जा मिलती है तथा इन्द्रियां आकाश में चली जाती हैं। मृत व्यक्ति को अर्थी पर रख कर चार पुरुष श्मशान में ले जाते हैं। उसके गुण-अवगुणों की चर्चा होती है । उसकी अस्थियां श्वेत हो जाती हैं । उसे दी जाने वाली आहुतियां भस्म रूप बन जाती हैं । दान का झगड़ा मूर्ख लोगों ने खड़ा कर दिया है। जो कोई आस्तिकवाद बताते हैं, उनकी वह बात बिलकुल झूठी और वृथा बकवास होती है । शरीर के भेद के पश्चात् विद्वानों और मूर्खो का उच्छेद होता है, वे नष्ट होते हैं । मृत्यु के अनन्तर उनका कुछ भी शेष नहीं रहता । " ४. पकुध कच्चायन : अन्योन्यवादी 1 पकुध कच्चायन अन्योन्यवादी थे । वे कहते थे - "सात पदार्थ किसी के किये, करवाये, बनाये या बनवाये हुए नहीं हैं, वे तो वन्ध्य, कूटस्थ और नगर द्वार के स्तम्भ की तरह अचल हैं । वे न हिलते हैं, न बदलते हैं। एक-दूसरे को वे नहीं सताते, एक-दूसरे का सुखदुःख उत्पन्न करने में वे असमर्थ हैं । वे हैं - पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, सुख, दुःख एवं जीव । इन्हें मारने वाला, मरवाने वाला, सुनने वाला, सुनाने वाला, जानने वाला अथवा इनका वर्णन करने वाला कोई भी नहीं है । जो कोई तीक्ष्ण शस्त्र से किसी का सिर काट डालता है, वह उसका प्राण नहीं लेता। इतना ही समझना चाहिए कि सात पदार्थों के बीच के अवकाश में शस्त्र घुस गया है।" ५. संजय वेलट्ठिपुत्त : विक्षेपवावी संजय वेलट्ठपुत्तविक्षेपवादी थे । वे कहते थे - "यदि कोई मुझे पूछे कि क्या परलोक Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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