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समसामयिक धर्म-नायक
भगवान् महावीर और गौतम बुद्ध के युग में श्रमणों व ब्राह्मणों का संघर्ष बहुत ज्वलन्त हो चुका था। श्रमण-सम्प्रदाय भी अनेक हो चुके थे। वे ब्राह्मण-परम्परा से लोहा ले रहे थे, तो एक ओर पारस्परिक वाद-विवाद में भी लगे थे, ऐसा आगमों व पिटकों से विदित होता है।
त्रिपिटकों में
त्रिपिटकों में सात जिनों की चर्चा कई स्थानों पर मिलती है । वे सात जिन थे—पूरण कस्सप, (पूर्ण काश्यप), मक्खली गोशाल, अजित केसकम्बली, पकुध कच्चायन (प्रक्रुध कात्यायन,) संजय बेलठ्ठिपुत्त, निगण्ठ नातपुत्त (निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्त) और गौतम बुद्ध । दीघ निकाय के सामञफल सुत्त में सातों धर्म-नायकों की मान्यता का विवरण मिलता हैं। धर्मानन्द कोसम्बी ने उन मान्यताओं का सार निम्न रूप से उपस्थित किया है :
१. पूरण कस्सप : आक्रयवादी
पूरण कस्सप अक्रियवाद के समर्थक थे। वे कहते थे-"अगर कोई कुछ करे या कराये, काटे या कटाये, कष्ट दे या दिलाये, शोक करे या कराये, किसी को कुछ दुःख हो या कोई दे, डर लगे या डराये, प्राणियों को मार डाले, चोरी करे, घर में सेंध लगाये, डाका डाले, एक ही मकान पर धावा बोल दे, बटमारी करे, परदारा-गमन करे या असत्य बोले, तो भी उसे पाप नहीं लगता। तीक्ष्ण धार वाले चक्र से यदि कोई इस संसार के पशुओं के मांस का बड़ा ढेर लगा दे, तो भी उसमें बिल्कुल पाप नहीं है। उसमें कोई दोष नहीं है। गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर जाकर यदि कोई मार-पीट करे, काटे या कटवाये, कष्ट दे या दिलाये, तो भी उसमें बिलकुल पाप नहीं है । गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर जाकर यदि कोई अनेक दान करे या करवाये, यज्ञ करे या करवाये, तो भी उसमें कोई पुण्य नहीं मिलता । दान, दम संयम और सत्य-भाषण से पण्य की प्राप्ति नहीं होती।"
१. भगवान् बुद्ध, पृ० १८१-१८३।
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