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________________ ४७० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड १ एक दिन बुद्ध को इस बात का पता लगा। उन्होंने भिक्षुओं को एकत्रित किया और कहा-'भिक्षुओ ! बीस वर्ष से कम उम्र का पुरुष सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, साँप-बिच्छू आदि के कष्टों को सहने में असमर्थ होता है । कठोर दुरागत के वचनों और दुःखमय, तीव्र, खरी, कटु, प्रतिकूल, अप्रिय, प्राण हरने वाली उत्पन्न हुई शारीरिक पीड़ाओं को सहन न करने वाला होता है । भिक्षुओ ! इन्हीं सब कारणों से मैं नियम करता हूँ कि बीस वर्ष से पूर्व किसी व्यक्ति को उपसम्पदा नहीं देनी चाहिये।" तब से भिक्षु बनाने का नियम बीस वर्ष का हो गया। पर, समय-समय पर ऐसे प्रसंग आने लगे कि अन्त में बालकों को भी संघ-सम्बद्ध करने का अन्य मार्ग बुद्ध को निकालना पड़ा। वह था-श्रामणेर बनाना। एक बार घटना-विशेष पर नियम बना दिया गयापन्द्रह वर्ष से कम आयु वाले बच्चे को श्रामणेर नहीं बनाना चाहिए। जो बनाएगा, उसे दुक्कट का दोष होगा। पुन: एक प्रसंग ऐसा आया, जिससे पन्द्रह वर्ष से कम आयु वाले बच्चे को भी श्रामणेर बनाने का विधान करना पड़ा। __आयुष्मान् आनन्द का एक श्रद्धालु परिवार महामारी में मर गया। केवल दो बच्चे बच गये । आनन्द को उनकी अनाथ अवस्था पर दया आई। उसने सारी स्थिति बुद्ध के पास रखी। बुद्ध ने कहा-'आनन्द ! क्या वे बालक कौआ उड़ाने में समर्थ हैं ?' आनन्द ने कहा---'हाँ, भगवन् !' तब बुद्ध ने एकत्रित भिक्षुओं से कहा- भिक्षुओ ! कौआ उड़ाने में समर्थ पन्द्रह वर्ष से कम उम्र के बच्चे को श्रामणेर बनाने की अनुमति देता हूँ।' राहुल को श्रामणेर प्रव्रज्या देने की घटना बहुत ही रोचक है। उसी प्रसंग पर बुद्ध ने नियम बनाया-'भिक्षुओ! माता-पिता की अनुमति के बिना पुत्र को प्रव्रजित नहीं करना चाहिए । जो प्रव्रजित करेगा, उसे दुक्कट का दोष होगा।'५ उक्त प्रकरणों से जैन और बौद्ध, दोनों ही परम्पराओं के दीक्षा-सम्बन्धी अभिमत प्रकट हो जाते हैं। महावीर ने आठ वर्ष से कुछ अधिक की अवस्था वाले बालक को दीक्षित करने का विधान किया है। बुद्ध ने काक उड़ाने में समर्थ बालक को श्रामणेर बनाने का विधान किया है । 'श्रामणेरता' भिक्षत्व की ही एक पूर्वावस्था है। कुल मिला कर यह माना जा सकता है, धर्मावरण में बाल्यावस्था को दोनों ने ही सर्वथां वाधक नहीं माना है। धर्म-संघ में स्त्रियों का स्थान महावीर ने एक साथ चतुर्विध-संघ की स्थापना की। विनय पिटक के अनुसार बौद्ध धर्म-संघ में पहले-पहल भिक्षुणियों का स्थान नहीं था। वह स्थान कैसे बना, इसका विनय पिटक में रोचक वर्णन है ___ एक बार बुद्ध कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम में रह रहे थे। उनकी मौसी प्रजापति गौतमी, उनके पास आई और बोली-भन्ते ! अपने भिक्षु-संघ में स्त्रियों को भी स्थान दें!' १. विनय पिटक, महावग्ग, महास्कन्धक, १-३-६ । २. वही, १-३-७। ३. वही, १-३-८ । ४. विस्तार के लिए देखें; 'भिक्षु संघ और उसका विस्तार' प्रकरण । ५. विनय पिटक, महावग्ग महास्कन्धक, १-३-११ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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