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इतिहास और परम्परा] आचार-ग्रन्थ और आचार-संहिता
४७१ बुद्ध ने कहा-'यह मुझे अच्छा नहीं लगता।' गौतमी ने दूसरी बार और तीसरी बार भी अपनी बात दोहराई, पर, उसका परिणाम कुछ नहीं निकला।
कुछ दिनों बाद जब बुद्ध वैशाली में विहार कर रहे थे, गौतमी भिक्षुणी का वेष बना कर अनेक शाक्य-स्त्रियों के साथ आराम में पहुँची। आनन्द ने उसका यह स्वरूप देखा। दीक्षा-ग्रहण करने की आतुरता उसके प्रत्येक अवयव से टपक रही थी। आनन्द को दया आई। वह बुद्ध के पास पहुँचा और निवेदन किया- 'भन्ते ! स्त्रियों को भिक्षु-संघ में स्थान दें।' क्रमशः तीन बार कहा, पर, कोई परिणाम नहीं निकला। अन्त में कहा-'यह महाप्रजापति गौतमी है, जिसने मातृ-वियोग में भगवान् को दूध पिलाया है ; अतः इसे अवश्य प्रव्रज्या मिले।'
अन्त में बुद्ध ने आनन्द के अनुरोध को माना और कुछ अधिनियमों के साथ उसे स्थान देने की आज्ञा दी।
१. विनय पिटक, चुल्लवग्ग, भिक्खुणी स्कन्धक, १०-१-४ ।
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