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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
घी, मक्खन, तेल, दूध, दही आदि विशेष पदार्थों को भिक्षु माँग कर ले तो उसे 'पाचित्तिय' बताया है ।"
जैन परम्परा के अनुसार साधु भोजन को भिक्षा-रूप से अपने पात्र में ग्रहण करता है और अपने उपाश्रय में आकर या किसी उपयुक्त एकान्त स्थान में भोजन करता है । बौद्धपरम्परा के अनुसार बौद्ध भिक्षु आमन्त्रण पाकर गृहस्थ के घर भोजन के लिए जाता है । विनय पिटक के 'सेखिय' प्रकरण में भिक्षु भिक्षुणी को गृहस्थ के घर में किस संयत गतिविधि से जाना व बैठना चाहिए, इस विषय में बहुत ही व्यवस्थित शिक्षा विधान है। भोजन करने सम्बन्धी शिक्षा-पद रोचक और सभ्यता सूचक हैं। इस सम्बन्ध में भिक्षुणी की प्रतिज्ञाएं हैं :
१. ग्रास को बिना मुँह तक लाये मुख के द्वार को न खोलूंगी ।
२. भोजन करते समय सारे हाथ को मुँह में न डालूँगी ।
३. ग्रास पड़े हुए मुख से बात नहीं करूंगी। ४. ग्रास उछाल-उछाल कर नहीं खाऊँगी । ५. ग्रास को काट-काट कर नहीं खाऊँगी । ६. गाल फुला-फुला कर नहीं खाऊँगी । ७. हाथ झाड़-झाड़ कर नहीं खाऊँगी ।
८. जूठन बिखेर- बिखेर कर नहीं खाऊंगी ।
६. जीभ चटकार चटकार कर नहीं खाऊँगी ।
१०. चप-चप कर नहीं खाऊँगी । २
ये प्रतिज्ञाएं भिक्खु पातिमोक्ख में भिक्षुओ के लिए भी हैं । भिक्षुणियों के लिए लहसुन की वर्जना की गई है । 3
दीक्षा-प्रसंग
दीक्षा किस वयोमान में दी जा सकती है, इस विषय से दोनों परम्पाओं के विधान बहुत ही भिन्न हैं । जैन परम्परा में जन्म से आठ वर्ष से कुछ अधिक उम्र वाले की दीक्षा का विधान किया गया है ।" इससे पूर्व दीक्षा देने वाले को प्रायश्चित्त कहा है । विनय पिटक का कथन है-- यदि भिक्षु जानते हुए बीस वर्ष से कम उम्र वाले व्यक्ति को उपसम्पन्न ( दीक्षित) करे, तो वह दीक्षित अदीक्षित है ।" महावीर और बुद्ध लगभग एक ही युग व एक ही क्षेत्र में थे। दोनों ही श्रमण संस्कृति की दो धाराओं के नायक थे । दीक्षा वयोमान का यह मौलिक भेद अवश्य ही आश्चर्योत्पादक है । वयस्क दीक्षा और अवयस्क दीक्षा का प्रश्न उस समय भी समाज में रहा होगा । यदि ऐसा ही था तो एक संघ ने उसे मान्यता दी और एक संघ ने उसे मान्यता नहीं दी, इसका क्या कारण ?
१. विनय पिटक, भिक्खुणी पातिमोक्ख, पाचित्तिय, ३६ ।
२. वही, सेखिय ४१-५० ।
३. वही, भिक्खुणी पातिमोक्ख, पाचित्तिय १ ।
४. व्यवहार सूत्र, उ० १०, बो० २४ ।
५. विनय-पिटक भिक्ख पातिमोक्ख, पाचित्तिय ६५ ।
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