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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
साधु
संघ की सम्मति के बिना भिक्षुणियों को उपदेश दे; उसे 'पाचित्तिय'
६. जो है । '
;
७. सम्मति होने पर भी जो भिक्षु सूर्यास्त के बाद भिक्षुणियों को उपदेश दे 'पाचित्तिय' है । "
८. जो भिक्षु अतिरिक्त विशेष अवस्था ( भिक्षुणी का रुग्ण होना) के भिक्षुणीआश्रम में जाकर भिक्षुणियों को उपदेश करे, तो उसे 'पाचित्तिय' है ।
६. जो कोई भिक्षु भिक्षुणी के साथ अकेले एकान्त में बैठे ; उसे 'पाचित्तिय' है । " निशीथ सूत्र में भिक्षु और भिक्षुणियों के लिए ब्रह्मचर्य - सम्बन्धी पृथक्-पृथक् प्रकरण नहीं हैं । भिक्षुओं के लिए जो विधान हैं, वे ही उलट कर भिक्षुणियों के लिए भी समझ लिए जाते हैं ।
विनय पिटक में सभी प्रकार के दोषों के लिए मिक्षु पाति मोक्ख और भिक्खुणी पातिमोक्ख' नाम से दो पृथक्-पृथक् प्रकरण हैं। भिक्खुणी पातिमोक्ख के कुछ विधान इस प्रकार हैं :
१. जो भिक्षुणी कामासक्त हो अन्ततः पशु से भी यौन-धर्म का सेवन कर लेती है, वह 'पाराजिका' होती है अर्थात् संघ से निकाल देने योग्य होती है ।
२. जो भिक्षुणी किसी पाराजिक दोषवाली भिक्षुणी को जानती हुई भी संघ को नहीं बताती, वह 'पाराजिका' है ।
३. जो भिक्षुणी आसक्ति भाव से कामातुर पुरुष के हाथ पकड़ने व चद्दर का कोना पकड़ने का आनन्द ले; उसके साथ खड़ी रहे, भाषण करे या अपने शरीर को उस पर छोड़ तो वह 'पाराजिका' होती है । ७
भिक्षुणियाँ यदि दुराचारिणी, बदनाम, निन्दित बन भिक्षुणी संघ के प्रति द्रोह करती हों और एक-दूसरे के दोषों को ढाँकती हुई बुरे संसर्ग में रहती हों, तो दूसरी भिक्षुणियाँ उन भिक्षुणिओं को ऐसा कहें - " भगिनिओ ! तुम सब दुराचारिणी, बदनाम, निन्दित बन, भिक्षुणी संघ के प्रति द्रोह करती हो और एक दूसरे के दोषों को छिपाती हुई बुरे संसर्ग में रहती हो । भगिनियों का संघ तो एक एकान्त शील और विवेक का प्रशंसक है।" यदि उनके ऐसे कहने पर वे भिक्षुणियाँ अपने दोषों को छोड़ देने के लिए तैयार न हों, तो वे तीन बार तक उनसे उन्हें छोड़ देने के लिए कहें। यदि तीन बार तक कहने पर वे उन्हें छोड़े दें, तो यह उनके लिए अच्छा है नहीं तो वे भिक्षुणियाँ भी 'संघादिसेस' हैं । 5
१. विनय पिटक, पाचित्तिय २१ ।
२. वही, २२ ।
३. विनय पिटक, पाचित्तिय २३ । वही, ४. वही, ३० ।
५. वही, भिक्खुणी पातिमोक्ख, पाराजिक १ । ६. वही, ६ ।
७. वही, ८ ।
८. वही, भिक्खुणी पातिमोक्ख, संघादिसेस १२ ।
उसे
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