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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :१ स्त्रियों के सम्बन्ध से कुछ एक प्रायश्चित्त-विधान इस प्रकार किये गये हैं : १. जो साधु माता-समान इन्द्रियों वाली स्त्री से सम्भोग की प्रार्थना करे, करते को ___ अच्छा समझे; उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त ।' २. जो साधु माता-समान इन्द्रियों वाली स्त्री के जननेन्द्रिय में अंगुलि आदि डाले,
डालने को अच्छा समझे; उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त । ३. जो साधु माता-समान इन्द्रियों वाली स्त्री से शिश्न का मर्दन कराये, करते को
अच्छा समझे ; उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त । ४. जो साधु माता-समान इन्द्रियों वाली स्त्री से सम्भोग की इच्छा कर, लेख लिखे
या लिखने को अच्छा जाने ; उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त ।। ५. जो साध माता-समान इन्द्रियों वाली स्त्री से सम्भोग की इच्छा कर अठारहसरा,
नौसरा, मुक्तावली, कनकावली आदि हार व कुण्डल आदि आभूषण धारण करे,
करते को अच्छा समझे ; उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त ।५ ६. जो साधु माता-समान इन्द्रियों वाली स्त्री को सम्भोग की इच्छा से शास्त्र
पढ़ाये तथा पढ़ाते को अच्छा समझे ; उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त । ७. जो साधु अपने गच्छ की साध्वी तथा अन्य गच्छ की साध्वी के साथ विहार
करता हुआ कभी आगे-पीछे रहे, तब साध्वी के वियोग से दुःखित हो कर हथेली पर मुंह रख कर आ ध्यान करे, करते को अच्छा समझे ; उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त।
१. जे भिक्खू माउग्गमस्स मेहुणवडियाए विणवेइ, विणवंतं वा साइज्जइ ।
-वही, उ०६, बोल १ । २. जे भिक्खू माउग्गमस्स मेहुणं वडियाए हत्थकम्मं करेइ, करंतं वा साइज्जइ ।
-वही, उ० ६, बोल २। ३. जे भिक्खू माउग्गमस्स मेहुण वडियाए अंगादाणं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा, ___संवाहंतं वा, पलिमइंतं वा साइज्जइ ।
-णिसीह, उ०६, बो ४ । ४. जे भिक्खू माउग्गमस्स मेहुण वडियाए लेहं लिहइ, लेहं लिहावेइ, लेह वडियाए बहियाए गच्छइ, गच्छंतं वा, साइज्जइ।
-~-वही, उ० ६, बो० १३ । ५. जे भिक्खू माउग्गमस्स मेहुण वडियाए हाराणि वा, अद्धहाराणि वा, एकावली वा,
मुत्तावली वा, कणगावली वा, रयणावली वा, तुडियाणी वा, केउराणी वा, कुंडलाणी वा,पंजलाणी वा, मउडाणी वा, पलंबससुत्ताणी वा, सुवण्णसुत्ताणी वा करेइ करतं साइज्जइ । एवं धरेइ, धरंतं वा साइज्जइ ।
-वही, उ०७, बो० ८,६ । ६. जे भिक्खू माउग्गमस्स मेहुण वडियाए वाएइ, वायवायंतं वा साइज्जइ।
-वही, उ० ७, बो० ८८ । ७. जे भिक्खू समणिज्जियाए वा, परिगणिज्जियाए वा, निग्गंथीए सद्धि गामाणुमाम
दूइज्जमाणे पुरओ गच्छमाणे पिटुओ रोयमाणे, उहत्तमाण संकप्पचिंतासोगसागरं
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