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________________ इतिहास और परम्परा ] आचार-ग्रन्थ और आचार संहिता ४५ε २. जो साधु अंगुलि आदि से शिश्न को संचालित करे, करते को अच्छा समझे; उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त । ३. जो साधु शिश्न का मर्दन करे, बार-बार मर्दन करे, मर्दन करते को अच्छा जाने; उसे 'गुरु मासिक प्रायश्चित्त । ४. जो साधु शिश्न को तेल आदि से मर्दन करे, करते को अच्छा समझे ; उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त ५. जो साधु शिश्न पर पीठी करे, करते को अच्छा समझे; उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त । * ६. जो साधु शिश्न का शीत या उष्ण पानी से प्रक्षालन करे, करते को अच्छा समझे; उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त । ७. जो साधु शिश्न के अग्रभाग को उद्घाटित करे, करते को अच्छा समझे ; उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त । ६ ८. जो साधु शिश्न को सूंघता है, सूंघते को अच्छा समझता है ; उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त । ७ ६. जो साधु शिश्न को अचित्त छिद्र विशेष में प्रक्षिप्त कर शुक्रपात करे, करते को अच्छा समझे, उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त १. जे भिक्खू अंगादाणं कट्ठ ेणं वा, अंगुलियाए वा, सिलागए वा संचालेइ संचालतं वा, साइज्जइ । - वही, उ० १, बोल २ । २. जे भिक्खू अंगादाणं संवाहेज्ज वा, पलिमदेज्जवा, संवाहंतं वा, पलिमदेतं वा साइज्जइ । वही, उ० १, बोल ३ | ३. जे भिक्खू अंगादाणं तेलेण वा, घएण वा, वासाएण वा, णवणीए वा, अभंगेज्ज वा, मंक्खेज्ज वा, अभ्भंगंतं वा, मक्खतं वा साइज्जइ । - णिसीह उ० १, बोल ४ । ४. जे भिक्खू अंगादाणं कक्केण वा, लोद्देण वा, पउमचुण्णेण वा, पहाणेण वा सिणाणेण वा, चुण्णेहि वा, वण्णेहि वा, उवट्टे इ वा, उवट्टतं वा परिवट्टतं वा साइज्जइ । -वही, उ० १, बोल ५ । ५. जे भिक्खू अंगादाणं सीउदग वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा, उच्छोलेज्ज वा, पघोइज्ज वा, उच्छोलंतं वा, पघोयंतं वा साइज्जइ । - वही, उ० १, बोल ६ । वही, उ० १, बोल ७ । - वही, उ० १, वोल ८ । ८. जे भिक्खू श्रंगादाणं अण्णयरंसि अचित्तंसि सोयगंसि अणुष्पविसित्तए सुक्कपोल्ले णिग्धाएइ, णिग्घायंतं वा साइज्जइ । — वही, उ० १, बोल ६ । ६. जे भिक्खू अंगादाणं णिच्छलेइ, णिच्छलंतं वा साइज्जइ । ७. जे भिक्खू अंगादाणं जिग्घइ, जिग्घंतं वा साइज्जइ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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