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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : १ आयुष्मान् महाकाश्यप ने संघ को ज्ञापित किया और अनुश्रावण किया। संघ जब मौन रहा तो महाकाश्यप ने दूसरी बार और तीसरी बार भी वैसे ही किया । 'संघ इन पाँच भिक्षुओं के राजगृह में वर्षावास करने, धर्म व विनय का संगायन करने तथा वहीं अन्य भिक्षुओं के अनागमन से सहमत है; अत: चुप है, यह में धारणा करता हूँ । ४५४ संघ से अनुमति पाकर स्थविर भिक्षु धर्म और विनय के संगायन के लिए राजगृह आये। उनके मन में आया, भगवान् ने कहा है, सर्व प्रथम टूटे-फूटे को सुसज्ज करो; अतः प्रथम मास में यही करेंगे और द्वितीय मास में एकत्रित होकर संगायन करेंगे । आयुष्मान् आनन्द ने सोचा, शैक्ष्य रहते हुए मैं सन्निपात ( गोष्ठी) में जाऊँ ; यह मेरे लिए उचित नहीं होगा। रात का अधिकांश समय उन्होंने काय स्मृति में बिताया । प्रातः काल लेटने के अभिप्राय जब शरीर को फैलाया; पैर भूमि तक नहीं पहुँच पाये थे और सिर उपधान तक; इसी बीच उनका चित्त आस्रवों से मुक्त हो गया। आयुष्मान् आनन्द अर्हत् होकर सन्निपात में गय । "आवुसो ! संघ सुने, यदि संघ आयुष्मान् महाकाश्यप ने संघ को ज्ञापित कियाचाहता हो, तो मैं आयुष्मान् द्वारा पूछे गये विनय पूछू ।" आयुष्मान् उपालि ने भी संघ को ज्ञापित किया - "भन्ते ! संघ सुने, यदि संघ चाहता हो, तो मैं आयुष्मान् महाकाश्यप द्वारा पूछे गये विनय का उत्तर दूं ।" आयुष्मान् महाकाश्यप ने आयुष्मान् उपालि को कहा "आवुस ! उपालि ! प्रथम पाराजिका कहाँ प्रज्ञप्त की गई ?" "भन्ते ! राजगृह में । " " किसको लक्षित कर ?" "सुदिन्न कलन्द - पुत्त को लक्षित कर ।" " किस विषय में ? " "मैथुन धर्म में ।” महाकाश्यप ने उसके अनन्तर उपालि से प्रथम पाराजिका की कथा भी पूछी, निदान भी पूछा, पुद्गल (व्यक्ति) भी पूछा, प्रज्ञप्ति (विधान) भी पूछी, अनुप्रज्ञप्ति ( सम्बोधन ) भी पूछी, आपत्ति ( दोष-दण्ड) भी पूछी और अनापत्ति भी पूछी। "उपालि ! द्वितीय पाराजिका कहाँ प्रज्ञापित हुई ?" “भन्ते ! राजगृह में ।" " किसको लक्षित कर ?" "धनिय कुम्भकार - पुत्त को लक्षित कर ।" "किस विषय में ?" "अदत्तादान में ।" इसके साथ ही उपालि से द्वितीय पाराजिका की कथा, निदान, पुद्गल, प्रज्ञप्ति, अनुप्रज्ञप्ति, आपत्ति और अनापत्ति भी पूछी । "उपालि ! तृतीय पाराजिका कहाँ प्रज्ञप्त की गई ?" "भन्ते ! वैशाली में ।" " किसको लक्षित कर ?" "बहुत से भिक्षुओं को लक्षित कर ।" "किस विषय में ?" "मनुष्य-विग्रह ( नर - हत्या ) के विषय में । " Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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