SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास और परम्परा] आचार-ग्रन्थ और आचार-संहिता ४५३ चुल्लवग्ग के पंचशतिका खंधक में विनय पिटक की रचना का ब्यौरा देते हुए बताया गया है : आयुष्मान् महाकाश्यप ने भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए कहा- "एक समय में पांच सौ भिक्षुओं के साथ पावा और कुसिनारा के बीच जंगल में था। मार्ग से हट कर एक वक्ष के नीचे बैठा था। एक आजीवक उस समय मन्दार-पुष्प लेकर पावा के उसी मार्ग से जा रहा था। मैंने उससे पूछा-'आवुस! हमारे शास्ता को जानते हो ?' “आजीवक ने उत्तर दिया--हां, आवुस ! जानता हूँ, श्रमण गौतम को परिनिर्वाण प्राप्त हुए एक सप्ताह हुआ है । मैंने यह मन्दार-पुष्प वहीं से लिया है।" "श्रमण गौतम की स्मृति मात्र से कुछ अवीतराग भिक्षु बाँह पकड़ कर रोने लगे, कुछ कटे वृक्ष के सदृश गिर पड़े, लोटने लगे और कहने लगे, भगवान् बहुत शीघ्र ही परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये । किन्तु, जो वीतराग भिक्षु थे, वे स्मृति-सम्प्रजन्य के साथ उसे सहन कर रहे थे और सचित्त होकर सोच रहे थे, संस्कार (कृत वस्तुएँ) अनित्य हैं। वे अब कहाँ मिलेंगे? "सुभद्र नामक एक वृद्ध परिव्राजक भी उस समय उस परिषद् में बैठा था। उसने कहा-"भिक्षुओ ! शोक मत करो। रोओ मत । श्रमण गौतम की मृत्यु से हम सुयुक्त हो गये। उससे हम बहुधा पीड़ित रहा करते थे। वह हमें पुनः पुनः कहा करता था; यह तुम्हें विहित है और यह विहित नहीं है । अब हम स्वतंत्र हैं। जो चाहेंगे, करेंगे, नहीं चाहेंगे, नहीं करेंगे।" "अच्छा हो, अब हम धर्म और विनय का संगायन करें। अधर्म प्रकट हो रहा है और धर्म को हटाया जा रहा है; अविनय प्रकट हो रहा है और विनय को हटाया जा रहा है। अधर्मवादी बलवान हो रहे हैं और धर्मवादी दुर्बल हो रहे हैं। विनयवादी हीन हो रहे हैं और अविनयवादी पुष्ट हो रहे हैं।" भिक्षुओं ने समवेत स्वर से प्रस्ताव रखा-'तो भन्ते ! आप स्थविर भिक्षुओं का चुनाव करें।" महाकाश्यप ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया और चार सौ निन्नानवे अर्हत् भिक्षुओं का चुनाव किया। भिक्षुओं ने महाकाश्यप से निवेदन किया-“भन्ते ! यद्यपि आनन्द शेक्ष्य (अन-अर्हत् ) हैं, फिर भी छन्द (राग), द्वेष, मोह, भय, अगति (कुमार्ग) पर जाने के अयोग्य हैं। इन्होंने भगवान् के पास बहुत धर्म और विनय प्राप्त किया है। अत: इन्हें भी चुनें।" आयुष्यान् महाकाश्यप ने आनन्द को भी चुना। इस प्रकार पांच सौ भिक्षुओं का चुनर्षि सम्पन्न हो गया। स्थान का विमर्षण करते हुए स्थविर भिक्षुओं ने राजगृह का निर्णय लिया; क्योंकि यह नगर महागोचर' और विपुल शयनासन-सम्पन्न था। वहीं वर्षावास करते हुए धर्म और विनय के संगायन का निश्चय किया। साथ ही यह भी निर्णय लिया कि अन्य भिक्षु इस अवधि में राजगृह न आयें। १. आराम के निकट सघन बस्ती वाला। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy