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________________ १८ आचार-ग्रन्थ और आचार-संहिता आचार और परम्परा का पहलू भी दोनों धर्म-संघों के तुलनात्मक अन्वेषण का सुन्दर विषय बनता है। आचार और परम्परा की चर्चा समग्र आगम और त्रिपिटक साहित्य में छितरी पड़ी है, पर, मुख्यत: जैनाचार की सूचना मिसीह देता है और बौद्ध-आचार की सूचना विनय पिटक। णिसीह जैन-आगम प्रचलित विभाग-क्रम के अनुसार चार प्रकार के हैं-1. अङ्ग, 2. उपाङ्ग 3. मूल और 4. छेद । छेद-विभाग में णिसीह एक प्रमुख आगम है। इसकी अपनी कुछ स्वतंत्र विशेषताएँ हैं। इसका अध्ययन वही साधु कर सकता है, जो तीन वर्ष से दीक्षित हो और गाम्भीर्य गुणोपेत हो । प्रौढ़ता की दृष्टि से कक्षा में बाल वाला १६ वर्ष का साधु ही णिसीह का वाचक हो सकता है। णिसीह का ज्ञाता हुए बिना कोई साधु अपने सम्बन्धियों के घर भिक्षार्थ नहीं जा सकता और न वह उपाध्यायादि पद के उपयुक्त भी माना जा सकता है।' साधु-मण्डली का अगुआ होने में और स्वतन्त्र विहार करने में भी णिसीह का ज्ञान आवश्यक माना गया है। निशीथज्ञ हुए बिना कोई साधु प्रायश्चित देने का अधिकारी नहीं हो सकता। इन सारे विधि-विधानों से णिसीह की महत्ता भली-भांति व्यक्त हो जाती है। रचना-काल और रचयिता परम्परागत धारणाओं के अनुसार सभी आगम महावीर की वाणीरूप हैं । अङ्ग आगमों का संकलन पंचम गणधर व महावीर के उत्तराधिकारी श्री सुधर्मास्वामी के द्वारा १. निशीथ चूणि, गा० ६२६५; व्यवहार सूत्र, उद्दे० १०, गा०-२०-२१ तथा व्यवहार ___ भाष्य, उद्दे० ७, गा० २०२-३ । २. व्यवहार सूत्र, उद्दे० ६, सू० २,३ । ३. वही, उद्दे० ३, सू० ३ । ४. वही, उद्द० ३ सू० १। For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_05 www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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