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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ साधना आदि गुणों का कथन किया और कहा-इन्हें जो धारण किये रहता है, वह भाग्यशाली है। शास्ता के इस उत्तर से सब प्रभावित हुए और शास्ता के पास प्रवृजित हुए।
--चीनी धम्मपद कथा के आधार पर; S. Beal, Dhammapada. (Tr. from Chinese) pp. 103-4 Susil Gupta (India) Ltd, Calcutta, 1952.
समीक्षा जैन कथा-साहित्य में इस प्रकार के घटना-प्रसंग का कोई उल्लेख नहीं है। यह घटना इतना अवश्य व्यक्त करती है कि बुद्ध के बोधि-लाभ से पूर्व भी निगण्ठ लोग बड़े-बड़े समुदायों में विद्यमान थे। जैन कथा-साहित्य में ऐसे प्रसंग बहुत अल्प हैं, जिनमें बौद्ध-भिक्ष निगण्ठ-शासन में प्रवेश करते हैं, जब कि बौद्ध-कथा-साहित्य में प्रस्तुत प्रकार के कथाप्रसंगों की बहुलता है। इससे निगण्ठों की पूर्ववर्तिता स्पष्टतः व्यक्त होती है । बुद्ध से महावीर के ज्येष्ठ होने का भी यह एक स्पष्ट आधार बनता है।
51. धूलि-धूसरित निगण्ठ
उत्तरवर्ती प्रदेश में उस समय ५०० ब्रह्मण रहते थे। उन्होंने सोचा, गंगा के किनारे एक निगण्ठ साधु रहता है। वह तपस्वी है, अपने शरीर को धूलि-धूसरित रखता है। ज्ञानप्राप्ति के लिए हमें उसके पास चलना चाहिए। वे वहाँ से चले। घने जंगल में वे प्यासे हो गये । प्यास से पीड़ित हो क्रन्दन करने लगे। उस वन के एक वृक्ष से एक भूत प्रकट हुआ। उसने सबको पानी पिलाया। ब्राह्मणों के सम्मुख उसने बुद्ध की प्रशंसा की । वे ब्राह्मण निगण्ठ के पास न जाकर, बुद्ध के पास श्रावस्ती आ गये। बुद्ध ने कहा-नंगे रहने से जटा रखने से, धूलि-धूसरित होने से, उपवास करने से, भूमि पर सोने से किसी का कल्याण नहीं होगा। कल्याण तो आत्म-गुणों के विकास से होता है। यह सब सुन कर 500 ब्राह्यण वौद्ध बन गये।
-चीनी धम्मपद की कथा के आधार पर; S. Beal, op cit 54.
-चाना चा
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