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________________ इतिहास और परम्परा] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त भद्रा ने सोचा-."अब मैं नगर में अपने माता-पिता को कैसे मुंह दिखाऊँगी ? मैंने सब के रोकते-रोकते सत्थुक के साथ विवाह किया और उसका परिणाम यह निकला ।"वह पर्वत से नीचे उतर कर एक श्वेत वस्त्र धारी निगण्ठों के संघ में प्रव्रजित हो गई। वहाँ उसका लुंचन हुआ । लुचन के पश्चात् उसके मस्तक पर कुण्डलाकार केश आये; अतः उसका नाम भद्रा कुण्डल केशा पड़ा। उसने शास्त्राभ्यास किया । तर्क-वितर्क में कुशल हुई । निगण्ठ धर्म से असन्तुष्ट हो कर स्वतंत्र विहार करने लगी। प्रत्येक गाँव में वह पण्डितों को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती देती। चुनौती का उसका प्रकार था नाम के बाहर धूलि जमा कर जामुन की शाखा रोप देती। लोगों से कहती-"जो इसे बालकों से रौंदवा देगा, वह मुझ से शास्त्रार्थ करेगा।" उसने अनेक विद्वानों को पराजित किया। एक बार थावस्ती में अग्रश्रावक सारिपुत्त से उसका शास्त्रार्थ हुआ। सारिपुत्त से उसने अनेक प्रश्न पूछे। सारिपुत ने उनका यथार्थ उत्तर दिया। अन्त में सारिपुत्त ने उससे एक प्रश्न किया - "एक सत्य क्या है, जो सब के लिए मान्य हो ?"भद्रा उतर नहीं दे सकी। श्रद्धापूर्वक उसने कहा-"भन्ते ! मैं आपकी शरण हूँ।' सारिपुत्त ने कहा - "शास्ता की शरण लो, तुम्हें शान्ति मिलेगी।" __वह बुद्ध के पास गई। बुद्ध ने उसे कहा-"अनर्थ पदों से युक्त सौ गाथाएँ कहने की अपेक्षा धर्म का एक पद भी कहना श्रेष्ठ है, जिसे सुन कर उपशम होता है।" यह सुनकर शास्ता ने उसे प्रवजित किया। भद्रा अर्हत् हुई।' -धम्मपद अट्ठकथा, ८/३ थेरीगाथा अटकथा, पृ० ६६ के आधार से । शास्ता के उपदेशों का विस्तार करती वह मगध, कोसल, काशी, वज्जी, अंग आदि देशों में विहार करती रही। 'बुद्ध ने उसे प्रखर प्रतिभा में अग्रगण्या कहा ।२ समीक्षा प्रसंग बहुत ही सरस व घटनात्मक है । बुद्ध की प्रमुख शिष्या का पहले निगण्ठ-संघ में दीक्षित होना, एक विशेष बात है। केश-लुंचन व श्वेत वस्त्रधारी निगण्ठों का उल्लेख ऐतिहासिक महत्त्व का है। 50. ज्योतिविद् निगण्ठ . गंगा नदी के किनारे एक ब्रह्मचारी निगण्ठ रहता था। उसके ५०० अनुयायी थे। वह ज्योतिर्मण्डल का ज्ञाता था । वह ग्रहों और नक्षत्रों के उदयास्त देखकर भविष्य बताता एक दिन गंगा नदी के किनारे अपने अनयायिओं के साथ वह भाग्य-सम्बन्धी चर्चा कर रहा था। उस चर्चा-प्रसंग में प्रश्न उठा--"भाग्य कहते किसे हैं ?" उन्हें परस्पर के संलाप से कोई सन्तोषजनक समाधान नहीं मिला, तब वे सब बोधि-वृक्ष के पास आये और उन्होंने तथागत से यह प्रश्न पूछा । तथागत को कुछ ही समय पूर्व यहाँ बोधि-लाभ हुआ था। शास्ता ने संयम, १. थेरी गाथा, १०७-११ । २. अंगुत्तर निकाय, एकक्कनिपात, १४ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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