________________
४५०
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
हुआ । अङ्ग तर आगमों का संकलन बहुश्रुत व ज्ञान स्थविर मुनियों द्वारा हुआ। जिसीह भी अङ्ग तर आगम है; अत: वह स्थविर-कृत है, यह कहा जा सकता है। पर, इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह महावीर की वाणी से कहीं दूर चला गया है । अर्थागम रूप से सभी आगम भगवत्प्रणीत हैं । सूत्रागम रूप से वे गणधर - कृत या स्थविर - कृत हैं । आगम-प्रणेता स्थविर भी पूर्वधर होते हैं । उनका प्रणयन उतना ही मान्य है, जितना गणधरों का । अब प्रश्न रहता है, रचयिता के नाम और रचना काल का । भाष्य, चूर्णि व निर्युक्ति से रचयिता के सम्बन्ध में अनेक अभिमत निकलते हैं । निशीथ का अन्य नाम आचार प्रकल्प व आयारंग ( आचरांग ) है । आयारंग चूर्णि के रचयिता ने इस सम्बन्ध से चर्चा करते हुए ' स्थविर' शब्द का अर्थ 'गणधर ' किया है । ' आयारंग नियुक्ति की थेरेहिं ( गा० २८७ ) के स्थविर शब्द की व्याख्या आचार्य शीलांक ने इस प्रकार की है - स्थविरैश्रुतवद्धं श्चतुर्दशपूर्वविद्भिः । यहाँ श्रुतवृद्धचतुर्दश पूर्वघर मुनि को स्थविर कहा है। पंचकल्प भाष्य की चूर्णि में बताया गया है- - "इस आचार प्रकल्प का प्रणयन भद्रबाहु स्वामी ने किया है ।" निशीथ सूत्र की कतिपय प्रशस्ति गाथाओं के अनुसार इसके रचयिता विशाखाचार्य प्रमाणित होते हैं । इस प्रकार णिसीह के सम्बन्ध से किसी एक ही कर्त्ता विशेष को पकड़ पाना कठिन है । तत्सम्बन्धी मतभेदों का कारण णिसीह की अपनी अवस्थिति भी हो सकती है । ऐतिहासिक गवेषणाओं से यह स्पष्ट होता है कि मिसीह सुत्त प्रारम्भ में आयारंग सूत्र की चूला रूप था । ऐतिहासिक आधारों से यह भी स्पष्ट होता है, आयारंग स्वयं पहले नव अध्ययनों तक ही गणधर - रचित द्वादशांगी का प्रथम अंग था । क्रमशः स्थविरों ने इसके आचार-सम्बन्धी विधि-विधानों का पल्लवन किया और प्रथम, द्वितीय, तृतीय चूलिकाओं के रूप में उन्हें इस अंग के साथ संलग्न किया। साधुजन आचार-सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन करे, तो उनके लिए प्रायश्चित विधान का एक स्वतन्त्र प्रकरण स्थविरों ने बनाया और चूला के रूप में आयारंग के साथ जोड़ दिया । यह प्रकरण नवम पूर्व के आचार वस्तु विभाग से निकाला गया था। इसका विषय आयारंग से सम्बन्धित था; अत: वहीं वह एक चूला के रूप में संयुक्त किया गया । जिसीह का एक नाम आयार भी है । हो सकता है, वह इसी बात का प्रतीक हो । आगे चल कर स्थविरों द्वारा गोप्यता आदि कारणों से वह चूला आयारंग से पुनः पृथक् हो गई । उसका नाम जिसीह रखा गया और वह स्वतंत्र आगम के रूप में छेद सूत्र का एक प्रमुख अंग बन गया । कर्त्ता के सम्बन्ध में नाना
१. एयाणि पुण आयारग्गाणि आयार चेव निज्जूढाणि । के णिज्जूढानि ? थेरेहिं ( २८७ ) थेरा - गणधरा ॥
२. दंसणचरितजुत्तो, जुत्तो गुत्तीसु सज्जणहिएसु । नामेण विसाहगणी महत्त रओ, गुणाम मंजूसा ॥ १ ॥ कित्तीकंतिपिढो, जसपत्तो (दो) पड़हो तिसागरनिरुद्धो । पुरूत्तं भाई भहिं, ससिव्व गगणं गुणं तस्स ||२|| तस्स लिहियं निसीहं, धम्मधुरावरणपवर पुज्जस्स । आरोग्गं धाएणिज्जं, सिस्सप सिस्सोव भोज्जं च ॥३॥
Jain Education International 2010_05
- आयारंग चूर्णि, पृ० ३६६
- निशीथ सूत्रम्, चतुर्थं विभाग, पृ० ३९५
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org