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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :
राजा बालक को ले कर बुद्ध के पास आया और बोला- “भन्ते ! बुद्धानुस्मृति से ही इस बालक की रक्षा हुई है ।"
- धम्मपद अट्ठकथा, २१-५ के आधार से ।
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समीक्षा
नमो बुद्धस्स और नमो अरहन्तानं का शब्द प्रयोग तुलनात्मक अध्ययन के लिए बहुत ही रोचक हो जाता है । दोनों परम्पराओं का वन्दन सूक्त बहुत ही समान शैली से प्रसूत हुआ है | 'सम्यग्दृष्टि' और 'मिथ्या दृष्टि' के शब्द प्रयोग भी दोनों परम्पराओं की समान धारणाओं के सूचक हैं । जैन परम्परा भी उक्त अभिप्राय में 'सम्यग् दृष्टि' और 'मिथ्या दृष्टि' का प्रयोग करती है ।
प्रस्तुत घटना-प्रसंग का शेष महत्त्व एक दन्तकथा के रूप में ही रह जाता है ।
४६. निर्ग्रन्थों को दान
राजगृह में एक ब्राह्मण रहता था । वह सारिपुत्त का मामा था । सारिपुत्त स्थविर ने एक बार अपने मामा से पूछा - "विप्रवर ! कोई पुण्य कर्म करते हो ?"
“भन्ते ! ब्रह्मलोक जाने के लिए प्रति मास एक सहस्र मुद्राएं व्यय कर निर्ग्रन्थों को दान देता हूँ ।'
सारिपुत्र ब्राह्मण को साथ लेकर बुद्ध के पास आये । ब्राह्मण से कहा - "ब्रह्मलोक जाने का मार्ग बुद्ध से पूछो।” ब्राह्मण ने वैसा ही किया । भगवान् ने कहा - "इस प्रकार के सौ वर्ष तक दिये गये दान से भी मेरे भिक्षुओं को मुहूर्तमात्र प्रसन्न चित्त से देखना या उन्हें कुड़छी भर मिक्षा देना श्रेष्ठ है।
- धम्मपद अट्ठकथा, ८-५ के आधार से ।
समीक्षा
धम्मपद - अट्ठकथा के रचयिता ने धम्मपद की प्रत्येक गाथा पर कोई एक कथा लिख देना आवश्यक ही समझा है, ऐसा लगता है। बहुत सम्भव है, इस हेतु उन्हें बहुत सारी कथाएं अपनी ओर से ही गढ़ देनी पड़ी हों । निर्ग्रन्थ अपने लिए पकाया व अपने लिए खरीदा अन्न, वस्त्र आदि ग्रहण नहीं करते। इस स्थिति में यह कथा वस्तु संदिग्ध ही रह जाती है ।
१. मासे मासे सहस्सेन यो यजेथ सतं समं । एकञ्च भावितत्तानं मुहुत्तमपि पूजये । सा देव पूजना सेय्यो यं चे पस्ससतं हुतं ।।
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- धम्मपद, १०६
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