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________________ इतिहास और परम्परा] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातापुत्त ४४१ "अभी बहुत समय अवशिष्ट है। क्या यहाँ नगर में कोई ऐसा पण्डित सम्यक्-सम्बुद्ध के सिद्धान्तों का ज्ञाता, श्रमण-ब्राह्मण या गणाचार्य है, जिसके साथ वार्तालाप करूँ, जो मेरी शंकाओं का समाधान कर सके।" पांच सौ यवनों ने राजा से निवेदन किया-"महाराज ! ऐसे छः पण्डित हैं; १. पूरण कस्सप, २. मक्खलि गोशाल, ३. निगण्ठ नातपुत्त, ४. संजय वेलट्ठिपुत्र, ५. अजित केस-कम्बली और ६. पकुध कच्चायन । वे संघ-नायक, गण-नायक, गणाचार्य, प्राज्ञ और तीर्थंकर हैं। जनता में उनका बड़ा सम्मान है। महाराज ! आप उनके पास जायें और अपनी शंकाओं को दूर करें। ...वे भिक्षु के तुमती विमान में महासेन देवपुत्र के रूप में उत्पन्न हुए। राजा मिलिन्द के प्रश्नों को समाहित करने के लिए संघ द्वारा विशेष प्रार्थना किये जाने पर वे हिमालय के पास ब्राह्मणों के काजंगल ग्राम में सोनुत्तर ब्राह्मण के घर अवतरित हुए। उनका नाम नागसेन रखा गया। आगे चलकर यही आचार्य नागसेन हुए, जिन्होंने राजा मिलिन्द के प्रश्नों को समाहित किया। - मिलिन्द प्रश्न (हिन्दी-अनुवाद), अनु० भिक्षु जगदीश काश्यप, पृ० ४.६ के आधार से। समीक्षा राजा मिलिन्द बुद्ध-निर्वाण के ५०० वर्ष पश्चात् हुआ, ऐसा बताया गया है। यहाँ भी बुद्ध के अतिरिक्त छहों धर्मनायकों के नाम गिनाये गये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बौद्ध-साहित्य में ऐसी एक प्रथा ही रही है कि निगण्ठ, आजीविक प्रभूति भिक्षुओं के सम्बन्ध से भी कुछ कहना हो, तो उनके प्रवर्तक निगण्ठ नातपुत्त, मक्खलि गोशाल के नाम से ही कह दिया जाये। निगण्ठ नातपुत्त की वर्तमानता में भी जहाँ-तहाँ उनका नाम आया है, अनेक स्थलों पर घटना का सम्बन्ध निगण्ठ भिक्षुओं से ही हो सकता है । इसी घटना-प्रसंग पर भिक्षु जगदीश काश्यप का कहना है-"मालूम होता है कि इन (छहों तीर्थंकरों) की अपनी-अपनी गद्दियाँ इन्हीं नामों से चलती होंगी, जैसे—मारतवर्ष में 'शंकराचार्य' की गद्दी अभी तक बनी है। किन्तु इन गद्दियों का कब आरम्भ हुआ और कब अन्त; इसका पता नहीं।" शंकराचार्य की तरह एक ही नाम से इन सब की गद्दियाँ चलती हों, इसका तो कोई आधार नहीं है, पर, उन मतों के सम्बन्ध में यह एक कहने की पद्धति (Stock Phrase) रही है, ऐसा अवश्य बैंगता है। ४३. लंका में निर्ग्रन्थ राजा पाण्डुकामय का राज्याभिषेक हुआ। उसने सुवर्णपाली को अग्रमहिषी के पद पर व चन्द्रकुमार को पुरोहित के पद पर अभिषिक्त किया।...... राजा ने पाँच सौ चण्डाल १. मिलिन्द प्रश्न (हिन्दी-अनुवाद), अनु० भिक्षु जगदीश काश्यप, पृ० ४ । २. वही बोधिनी, पृ०६। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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