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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ स्थविर के परिनिर्वत होने का समाचार जब राजा अजातशत्र को मिला, तब उसने चर-पुरुषों को नियुक्त करके पांच सौ चोरों तथा नगर के सब तैथिकों को पकड़वा मँगाया और उन्हें नाभी भर गहरे गड्ढों में गड़वा कर जीवित ही जलवा दिया।
-धम्मपद-अट्ठकथा, १०१७ के आधार से।
समीक्षा
यहाँ वृत्तान्त दो स्थानों में उपलब्ध होता है--- जातक अटकथा और घम्मपद-अट्ठकथा। जातक अट्ठकथा में मौग्गल्यायन के वध-प्रसंग में निगण्ठों का उल्लेख है और धम्मपद-अट्ठकथा में ताथकों का । यथार्थ दोनों ही नहीं लगते । निगण्ठों व तैथिकों को गहित करने का ही सारा उपक्रम लगता है।
डॉ० मललशेकर ने Dictionary of Pali Proper Names' में तथा एच० जी० ए० वान भैयट ने Encyclopaedia of Buddhism२ में लिखा है-"अजातशत्रु ने ५०० निगण्ठों का वध करवाया; इसलिए ही निगण्ठों का अभिप्राय अजातशत्रु के प्रति अच्छा नहीं रहा।" यह लिखना यथार्थ नहीं है। वस्तुस्थिति तो यह है कि बौद्ध-परम्परा अजातशत्रु की बहुत स्थलों पर उपेक्षा करती है। जबकि जैन-परम्परा मुख्यतया उसे सम्मानित स्थान देती है। अजातशत्रु निगण्ठों का वध कराये, यह जरा भी सम्भव नहीं लगता।
४२. मिलिन्द प्रश्न
जम्बूद्वीप के सागल नगर में मिलिन्द राजा हुआ। वह पण्डित, चतुर, बुद्धिमान और योग्य था । भूत, भविष्य और वर्तमान सभी योग-विधान में वह सावधान रहता था। उन्नीस विद्याओं में पारंगत था। शास्त्रार्थ करने में अद्वितीय और श्रेष्ठ था। वह सभी तीर्थंकरों (आचार्यों) में श्रेष्ठ समझा जाता था। राजा मिलिन्द के समान प्रज्ञा, बल, वेग, वीरता, धन और भोग में जम्बूद्वीप में दूसरा कोई नहीं था। वह महासम्पत्तिशाली और उन्नतिशील था। उसकी सेनाओं और वाहनों का अन्त नहीं था।
राजा मिलिन्द एक दिन चतुरंगिनी अनन्त सेना को देखने के अभिप्राय से नगर के बाहर आया। सेनाओं की गणना करने के अनन्तर वाद-प्रिय राजा ने शास्त्रार्थ करने के अभिप्राय से उत्सुकतापूर्वक आकाश की ओर देखा और अपने अमात्यों को सम्बोधित किया
१. Vol I, p.35 २. P. 320. ३. विशेष वर्णन देखें; 'अनुयायी राजा' प्रकरण के अन्तर्गत 'अजातशत्रु (पृ० ३३३
४. इन्दोग्नीक सम्राट मिनान्दर (Minander) ही राजा मिलिन्द था, जिसकी राजधानी
सागल (वर्तमान-स्यालकोट) थी; ऐसा विद्वानों का अभिमत है। देखें; मिलिन्द प्रश्न (हिन्दी अनुवाद), पृ० ४।
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