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इतिहास और परम्परा] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
लज्जा न करने की बात में जो लज्जित होते हैं और लज्जा करने की बात में लज्जित नहीं होते हैं ; वे प्राणी मिथ्या-दृष्टि को ग्रहण करने से दुर्गति को प्राप्त होते हैं।
भय न करने की बात में भय देखते और भय करने की बात में भय नहीं देखते; वे प्राणी मिथ्या-दृष्टि को ग्रहण करने से दुर्गति को प्राप्त होते है।
__ --धम्मपद-अट्ठकथा, २२-८ के आधार से ।
समीक्षा
इस घटना-प्रसंग में निगण्ठों के वस्त्र धारण की चर्चा है, पर, यह स्पष्ट नहीं होता कि किस प्रकार का वस्त्र वे धारण करते थे और उसका क्या प्रयोजन था? पर, इससे इतना तो स्पष्ट होता ही है कि बौद्ध-परम्परा को सचेलक और अचेलक; दोनों ही प्रकार के निगण्ठों का परिचय है।
४१. मोग्गलान का वध
एक समय तैथिक लोग एकत्रित हो सलाह करने लगे-'जानते हो, आवुसो ! किस कारण से, किसलिए, श्रमण गौतम का बहुत लाभ-सत्कार हो गया है ?'... 'एक महा-मौद्गल्यायन के कारण हुआ है। वह देवलोक भी जाकर देवताओं के काम को पूछ कर, आकर मनुष्यों को कहता है। नरक में उत्पन्न हुओं के भी कर्म को पूछ कर आकर, मनुष्यों को कहता है। मनुष्य उसकी बात को सुनकर बड़ा लाभ-सत्कार प्रदान करते हैं। यदि उसे मार सकें, तो वह लाभ-सत्कार हमें होने लगेगा...।' तब (उन्होंने अपने सेवकों को कह कर एक हजार कार्षापण पाकर, मनुष्य मारने वाले गुण्डों को बुलवा कर-'महामौद्गल्यायन स्थविर काल-शिला में वास करता है, वहाँ जाकर उसे मारो' (कह) उन्हें कार्षापण दे दिये। गुंडों (=चोरों) ने धन के लोभ से उसे स्वीकार कर लिया स्थविर को मारने के लिए वे गये और उन्होंने उनके वास-स्थान को घेर लिया। स्थविर उनके घेरने की बात को जान गये । वे कुंजी के छिद्र से (बाहर) निकल गये। उन्होंने स्थविर को न देख, फिर दूसरे दिन जाकर घेरा। स्थविर जान कर छत फोड़ कर आकाश में चले गये । इस प्रकार वह न प्रथम मास में, न दूसरे मास में ही स्थविर को पकड़ सके । अन्तिम मास प्राप्त होने पर, स्थविर अपने किये कर्म का परिणाम जान कर स्थान से नहीं हटे। घातकों ने जानकर स्थविर को पकड़ कर उनकी हड्डी को तंडुल-कण जैसा करके मार डाला। तब उन्हें मरा जान कर एक झाड़ी के पीछे डाल कर चले गए। स्थविर ने 'शास्ता को देखकर ही मारूँगा' (सोच), शरीर को ध्यान रूपी वेष्टन से वेष्टित कर, स्थिर कर, आकाश-मार्ग से शास्ता के पास जा, शास्ता को वन्दना कर "भन्ते ! परिनिर्वृत होऊँगा'-कहा।
"परिनिर्वृत होओगे, मौग्गलान !" "भन्ते ! हाँ।" "कहाँ जाकर ?" "भन्ते ! काल-शिला-प्रदेश में।" (मोग्गलान).. शास्ता को वंदना कर काल-शिला जा परिनिर्वृत हुए।...
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