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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ ३६. निम्रन्थों के पांच दोष
भिक्षुओ, जिस आजीवक में ये पाँच बातें होती हैं, वह ऐसा ही होता है, जैसा लाकर नरक में डाल दिया गया हो। कौन-सी पाँच बातें? प्राणी-हिंसा करने वाला होता है, चोरी करने वाला होता है, अब्रह्मचारी होता है, झूठ बोलने वाला होता है, सुरा-मेरय आदि नशीली चीजों का सेवन करने वाला होता है। भिक्षुओ, जिस आजीवक में ये पाँच बातें होती हैं, वह ऐसा ही होता है, जैसा लाकर नरक में डाल दिया गया हो।
भिक्षुओ, जिस निगण्ठ (=निम्रन्थ) में...जिस वृद्ध-श्रावक में.. जिस जटिलक में.. जिस परिव्राजक में जिस मागन्दिक में...जिस दण्डिक में जिस आरुद्धक में...जिस गोतमक में.. जिस देव धम्मिक में ये पांच बातें होती हैं, वह ऐसा ही होता है, जैसा लाकर नरक में डाल दिया गया हो। कौन-सी पाँच बातें? वह प्राणी हिंसा करने वाला..'नरक में डाल दिया गया हो।
-अंगुत्तर निकाय, ५-२८-८-१७ (हिन्दी अनुवाद), भाग २, पृ० ४५२ के आधार से।
समीक्षा
यह उल्लेख 'उपसम्पदा वर्ग' का है। इसमें आजीवक, जटिलक, परिव्राजक आदि के लिए भी ये ही पाँच बातें कही गई हैं।
४०. वस्त्रधारी निर्ग्रन्थ
श्रावस्ती की घटना है। कुछ बौद्ध-भिक्षुओं ने निगण्ठों को जाते देखकर परस्पर बातें की-"भिक्षुओ, ये निगण्ठ उन अचेलक भिक्षुओं से तो अच्छे ही हैं, जो थोड़ा भी वस्त्र नहीं रखते। ये बेचारे कम-से-कम अपने अग्रभाग को तो आच्छादित रखते हैं। लगता है, इन श्रमणों में तो सभ्यता और लोक-व्यवहार का कुछ ध्यान है।" बौद्ध भिक्षुओं की इस चर्चा को सुन कर निगण्ठ श्रमणों ने कहा-'हम लोक-व्यवहार और सभ्यता के लिए वस्त्र नहीं रखते । धूल और गन्दगी भी जीव हैं । हमारे भिक्षा-पात्र में पड़ कर उनकी हिंसा न हो; इसलिए हम वस्त्र पहनते हैं।"
बौद्ध और निगण्ठ, दोनों भिक्षुओं में लम्बी चर्चा चली। तत्पश्चात् बौद्ध भिक्षु जेतवन में भगवान् बुद्ध के पास आये । बुद्ध को अपना चर्चा-प्रसंग बताया। तब बुद्ध ने ये गाथाएँ कहीं:
अलज्जिता ये लज्जन्ति लज्जिता ये न लज्जरे । 'मिच्छादिट्ठिसमादाना सत्ता गच्छन्ति दुग्गति ।। अभये च भयदस्सिनो भये च अभयवस्सिमो। मिच्छादिद्विसमादाना सत्ता गच्छन्ति दुग्गति ॥
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