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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ बना दिया है। अन्य अट्ठकथाओं की तरह इस अट्टकथा का भी काल्पनिक कथानक से अधिक महत्त्व नहीं लगता। ३८. चार प्रकार के लोग भिक्षुओ ! दुनियां में चार प्रकार के लोग विद्यमान हैं। कौन से चार तरह के ? भिक्षुओ, एक आदमी अपने को तपाने वाला होता है, अपने को कष्ट देने में ही लुगा हुआ ; भिक्षुओ, एक आदमी दूसरों को तपाने वाला होता है, दूसरों को कष्ट देने में ही लगा हुआ ; भिक्षुओ, एक आदमी अपने को तपाने वाला, अपने को कष्ट देने में लगा हुआ है तथा दूसरों को भी तपाने वाला, दूसरों को कष्ट देने में ही लगा हुआ होता है ; भिक्षुओ, एक आदमी न अपने को तपाने वाला, न अपने को कष्ट देने में ही लगा होता है और न दूसरों को तपाने वाला, दूसरों को कष्ट देने में ही लगा होता है। जो न अपने को अनुतप्त करने वाला होता है, न दूसरों को अनुतप्त करने वाला होता है, वह इसी शरीर में तृष्णा-विहीन होकर, निवृत्त हो कर शान्तभाव को प्राप्त होकर, सुख का अनुभव करता हुआ श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करता है। भिक्षुओ, एक आदमी अपने को तपाने वाला, अपने को कष्ट देने में ही लगा रहने वाला कैसे होता है ? भिक्षुओ, एक आदमी नग्न होता है, शिष्टाचार-शून्य, हाथ चाटने वाला, 'भदन्त आयें' कहने पर न आने वाला, 'भदन्त खड़े रहें' कहने पर खड़ा न रहने वाला, लाया हुआ न खाने वाला, उद्देश्य से बनाया हुआ न खाने वाला और निमंत्रण भी न स्वीकार करने वाला होता है । वह न घड़े में से दिया हुआ लेता है, न ऊखल में से दिया हुआ लेता है, न किवाड़ की ओट से दिया हुआ लेता है, न मोड़े के बीच में आ जाने से दिया हुआ, न डण्डे के बीच में पड़ जाने से लेता है, न मूसल के बीच में आ जाने से लेता है। वह दो जने खाते हों, उनमें से एक उठ कर देने पर नहीं लेता है, न गमिणी का दिया लेता है, न बच्चे को दूध पिलाती हुई का दिया लेता है, न पुरुष के पास गई हुई का लेता है, न संग्रह किये हुए अन्न में से पकाया हुआ लेता है, न जहाँ कुत्ता खड़ा हो, वहाँ से लेता है, न जहाँ मक्खियां उड़ती हों, वहाँ से लेता है, वह न मछली खाता है, न मांस खाता है, न सुरा पीता है, न मेरय पीता है, न चावल का पानी पीता है। वह या तो एक ही घर में लेकर खाने वाला होता है या एक ही कौर खाने वाला, दो घर से लेकर खाने वाला होता है या दो ही कौर खाने वाला, सात घरों से लेकर खाने वाला होता या सात कौर खाने वाला। वह एक ही छोटी तश्तरी से भी गुजारा करने वाला होता है। वह दिन में एक बार भी खाने वाला होता है, दो दिन में एक बार भी खाने वाला होता है. सात दिन में एक बार भी खाने वाला होता है ; इस प्रकार वह पन्द्रह दिन में एक बार खाकर भी रहता है। वह शाक खाने वाला भी होता है, श्यामाक (धान) खाने वाला भी होता है, नीवार (धान खाने वाला भी होता है, ददल (धान) खाने वाला भी होता है, हट (शाक) खाने वाला भी होता है, कणाज (भात) खाने वाला भी होता है । वह आचाम खाने वाला होता है, खली खाने वाला भी होता है, तिनके (घास) खाने वाला भी होता है, गोबर खाने वाला भी होता है, जंगल के पेड़ों से गिरे फल-मूल को खाने वाला भी होता है। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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