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________________ ४३४ आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन [ खण्ड : १ मिला। जब से वह वहाँ पहुँचा, कौए का लाभ सत्कार घट गया । कोई भी व्यक्ति उस ओर देखना भी नहीं चाहता था । कौए को जब खाना मिलना बन्द हो गया, बह 'काँव-काँव' चिल्लाता हुआ अवकर पर जा गिरा। शास्ता ने दोनों कथाओं को मिलाते हुए कहा : अदस्सनेन मोरस्स सिखिनो मज्जुभाषिनो, काकं तत्थ अपुजेसं मंसेन च फलेन च ॥१॥ यदा च सरसम्पन्नो मोरो बाबेरु मागमा, अथ लाभो च सक्कारो वायसस्स अहायथ ॥२॥ यानुपज्जति बुद्धो धम्मराजा पभङ्करो, ताव अजे अपूजेसं पुथु समणब्राह्मणे || ३ || यदा च सरसम्पन्नो बुद्धो धम्मं अदेयसि, अथ लाभो च सक्कारो तित्थियान अहायथ ॥४॥ जब तक मधुर भाषी मोर से परिचित न थे, तब तक वहाँ माँस और फल से कौए का समादर हुआ । स्वर-युक्त मयूर जब बावेरु राष्ट्र पहुँचा, कोए का लाभ सत्कार न्यून हो गया। इसी तरह जब तक प्रभङ्कर धर्मराज पैदा नहीं हुए, दूसरे अनेक श्रमण-ब्राह्मणों -की पूजा हुई ; किन्तु, जब स्वर-युक्त बुद्ध ने धर्मोपदेश दिया तो तैथिकों का लाभ - सत्कार नष्ट हो गया । Jain Education International 2010_05 उस समय कौआ निगण्ठ नातपुत्त था और मोर-राज तो मैं ही था।" - जातक अट्ठकथा, बावेरु जातक, ३३९ ( हिन्दी अनुवाद), भा० ३, पृ० २८६ से २६१ के आधार से । समीक्षा कथा नितान्त आक्षेपात्मक और गर्दा सूचक है और परिपूर्ण साम्प्रदायिक मनोभावों से गढ़ी हुई है । यह कथा मूल त्रिपिटकों की नहीं है, इसलिए इसका अधिक महत्त्व नहीं है। मूल जातक में भी गुणी की वर्तमानता में अवगुणी की पूजा का उल्लेख है । यह उदन्त जातक अट्ठकथा का है; इसलिए भी काल्पनिक कथानक से अधिक इसका कोई महत्त्व नहीं दीख पड़ता । ३७. मांसाहार चर्चा सिंह सेनापति भगवान् बुद्ध की शरण में आया । अगले दिन के लिए भोजन का निमन्त्रण दिया । बुद्ध ने मौन रह कर उसे स्वीकार किया, सिंह सेनापति ने अन्य भोजन के साथ मांस भी बनाया । निगण्ठों ने जब यह सुना तो वे कुपित व असन्तुष्ट हुए । तथागत को व्यथित करने के अभिप्राय से उन्होंने गाली दी -- "श्रमण गौतम जान-बूझ कर अपने लिए बनाये गये मांस को खाता है।" धर्म सभा में भिक्षुओं ने गौतम बुद्ध का इस ओर ध्यान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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