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आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
मिला। जब से वह वहाँ पहुँचा, कौए का लाभ सत्कार घट गया । कोई भी व्यक्ति उस ओर देखना भी नहीं चाहता था । कौए को जब खाना मिलना बन्द हो गया, बह 'काँव-काँव' चिल्लाता हुआ अवकर पर जा गिरा। शास्ता ने दोनों कथाओं को मिलाते हुए कहा :
अदस्सनेन मोरस्स सिखिनो मज्जुभाषिनो, काकं तत्थ अपुजेसं मंसेन च फलेन च ॥१॥
यदा च सरसम्पन्नो मोरो बाबेरु मागमा, अथ लाभो च सक्कारो वायसस्स अहायथ ॥२॥
यानुपज्जति बुद्धो धम्मराजा पभङ्करो, ताव अजे अपूजेसं पुथु समणब्राह्मणे || ३ ||
यदा च सरसम्पन्नो बुद्धो धम्मं अदेयसि, अथ लाभो च सक्कारो तित्थियान अहायथ ॥४॥
जब तक मधुर भाषी मोर से परिचित न थे, तब तक वहाँ माँस और फल से कौए
का समादर हुआ । स्वर-युक्त मयूर जब बावेरु राष्ट्र पहुँचा, कोए का लाभ सत्कार न्यून हो गया। इसी तरह जब तक प्रभङ्कर धर्मराज पैदा नहीं हुए, दूसरे अनेक श्रमण-ब्राह्मणों -की पूजा हुई ; किन्तु, जब स्वर-युक्त बुद्ध ने धर्मोपदेश दिया तो तैथिकों का लाभ - सत्कार नष्ट हो गया ।
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उस समय कौआ निगण्ठ नातपुत्त था और मोर-राज तो मैं ही था।"
- जातक अट्ठकथा, बावेरु जातक, ३३९ ( हिन्दी अनुवाद), भा० ३, पृ० २८६ से २६१ के आधार से ।
समीक्षा
कथा नितान्त आक्षेपात्मक और गर्दा सूचक है और परिपूर्ण साम्प्रदायिक मनोभावों से गढ़ी हुई है । यह कथा मूल त्रिपिटकों की नहीं है, इसलिए इसका अधिक महत्त्व नहीं है। मूल जातक में भी गुणी की वर्तमानता में अवगुणी की पूजा का उल्लेख है । यह उदन्त जातक अट्ठकथा का है; इसलिए भी काल्पनिक कथानक से अधिक इसका कोई महत्त्व नहीं दीख पड़ता ।
३७. मांसाहार चर्चा
सिंह सेनापति भगवान् बुद्ध की शरण में आया । अगले दिन के लिए भोजन का निमन्त्रण दिया । बुद्ध ने मौन रह कर उसे स्वीकार किया, सिंह सेनापति ने अन्य भोजन के साथ मांस भी बनाया । निगण्ठों ने जब यह सुना तो वे कुपित व असन्तुष्ट हुए । तथागत को व्यथित करने के अभिप्राय से उन्होंने गाली दी -- "श्रमण गौतम जान-बूझ कर अपने लिए बनाये गये मांस को खाता है।" धर्म सभा में भिक्षुओं ने गौतम बुद्ध का इस ओर ध्यान
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