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इतिहास और परम्परा ]
त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
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के समय जैसी कि जुगनुओं की होती है । धर्म सभा में इस प्रसंग पर चर्चा चल पड़ी । शास्ता ने आकर पूछा- ''भिक्षुओ ! बैठे-बैठे अभी क्या बातचीत कर रहे थे ?" भिक्षुओं ने उपर्य ुक्त वार्तालाप - प्रसंग सुनाया, तो शास्ता ने फिर कहा-' - " भिक्षुओ ! न केवल अभी, पूर्व में भी जब तक गुणवान् उत्पन्न नहीं हुए थे, गुणहीनों को श्रेष्ठ लाभ और श्रेष्ठ यश मिलता रहा था। गुणवानों के अवतरित होने पर गुणहीनों का लाभ सत्कार चला जाता रहा था ।
"पूर्व समय में वाराणसी में ब्रह्मदत्त के राज्य-काल में बोधिसत्त्व मोर की योनि में उत्पन्न हुए थे । बड़े हुए और सुन्दरता से अलंकृत हो, जंगल में विचरने लगे । उस समय कुछ व्यापारी दिशा-काक' को साथ लेकर बावेरु राष्ट्र की ओर चले । बावेरु राष्ट्र में उन दिनों पक्षी नहीं होते थे । वहाँ के निवासी पिंजरे में आबद्ध उस कौए को देख कर अत्यन्त चकित हुए । उसकी ओर संकेत करते हुए वे परस्पर एक-दूसरे को कहने लगे “इसकी चमड़ी के वर्ण को देखो। इसकी चोंच गले तक है। इसकी आँखें मणि की गोलियों जैसी हैं । " कोए की इस प्रकार प्रशंसा करते हुए उन्होंने उन व्यापारियों से याचना की - "आर्यो ! यह पक्षी हमें दे दो। हमें इसकी आवश्यकता है । तुम्हें तो अपने राष्ट्र में अन्य भी मिल जायेंगे ।"
" मूल्य चुका कर इसे ले लो ।" "पाँच कार्षापण लेकर दे दें ।" "नहीं देंगे।"
मूल्य बढ़ता हुआ क्रमशः सौ कार्षापण तक पहुँच गया । आगन्तुक व्यापारियों ने कहा – “यद्यपि हमारे लिए यह बहुत उपयोगी है; फिर भी आपकी मंत्री से आकर्षित होकर हम इसे प्रदान कर रहे हैं ।" बावेरु वासियों ने सौ कार्षापण में उसे खरीद लिया। उन्होंने उसे सोने के पिंजरे में रखा । नाना प्रकार के मछली- माँस व फलाफल से उसे पाला । दूसरे पक्षियों के अभाव में वह दुर्गुणी कौआ भी वहाँ समाहत होकर श्रेष्ठलाभी हुआ ।
दूसरी बार वे व्यापारी एक मोर लेकर वहाँ आये । वह बहुत शिक्षित था । ज्यों ही चुटकी बजती, केका हो उठती और ज्यों ही ताली बजती, वह नाचने लगता । जनता के एकत्रित होने पर नौका की धुरा पर खड़ा हो परों को फैलाता, मधुर स्वर से केका करता और नाचने लगता । बावेरु- वासी उससे भी बहुत आकर्षित हुए। याचना करते हुए उन्होंने कहा - "आर्यो ! यह सुन्दर व सुशिक्षित पक्षी राज हमें दे दें ।"
आगन्तुक व्यापारियों ने कहा – “पहले हम कौआ लेकर आये, आपने उसे ले लिया । अब जबकि हम मयूरराज लेकर आये हैं; आप लोग इसे भी लेना चाहते हैं । आपके राष्ट्र में पली लेकर आना कठिनता से भरा रहता है ।"
बावेरु - वासियों ने कहा- "जो भी हो, यह पक्षी तो हमें देना होगा । आपके देश में तो दूसरा भी दुर्लभ नहीं है । यह तो हमें दे दीजिये ।
"
मूल्य बढ़ता हुआ क्रमशः हजार कार्षापण तक पहुँच गया। बावेरु-वासियों ने वह मूल्य चुका दिया और उसे ले लिया। मोर को सात रत्नों वाले पिंजरे में रखा गया। मछली, मांस, फल, दूध, खील तथा शर्बत से उसे पाला । मोर-राज को वहाँ श्रेष्ठ लाभ और यश
१. स्थल की दिशा जानने के लिए जहाजों पर रखा जाने वाला कौआ ।
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