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________________ ४३२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ निश्शंक होकर बकरियों के झुण्ड में पहुंच जाता था। वहाँ भेड़ों, बकरियों तथा बकरों को मार कर आनन्दपूर्वक खाता था और यथेच्छ घूमता रहता था। इसी प्रकार कुछ श्रमण-ब्राह्मण स्वांग रच कर जनता को ठगते हैं। उनमें से कोई अनाहारी होते हैं, कोई कठोर भूमि पर सोते हैं, कोई पांसुकूलिक होते हैं, कोई उकड़ ही बैठते हैं, कोई सप्ताह या पक्ष में एक बार भोजन करते हैं, कोई निर्जल रहते हैं और कोई पापाचरण करते हुए भी अपने को अर्हत् बतलाते हैं। पण्डितमानी ये सभी मूर्ख असत्पुरुष हैं। ..." बोधिसत्त्व ने राजा को धर्मोपदेश दिया। चारों राजकुमारों को अपने पास बुलाया और उन्हें भी धर्म-देशना से प्रभावित किया। राजा के कारनामों को प्रकाशित करते हुए कुमारों से कहा- "तुम राजा को क्षमा कर दो।" सबके बीच ही राजा से कहा-'अब कभी अविचारित कार्य न करना और इस प्रकार का दुस्साहस भी न करना ।" कुमारों से कहा"तुम भी राजा से द्वेष न रखना।" राजा ने कहा-"भन्ते ! मैंने इन पांच अमात्यों ल में फंस कर आप के तथा देवी के प्रति पाप-कर्म किया है। इन पांचों को अब मरवाता हूँ।" "महाराज ! ऐसा नहीं कर सकते।" "तो इनके हाथ-पांव कटवा देता हूं।" "नहीं, महाराज ! यह भी नहीं कर सकते।" राजा ने अमात्यों की सम्पत्ति का अपहरण करवा लिया और सिर में डा कर, तोबरा बान्ध उन्हें अपमानित किया और देश से बहिष्कृत कर दिया। बोधिसत्त्व वहाँ कुछ दिन ठहरे और राजा को अप्रमादी रहने का उपदेश देकर हिमालय की ओर ही चले गये। वहाँ ध्यान-अभिज्ञा प्राप्त की, जीवन-पर्यन्त ब्रह्मविहारों की भावना से अनुप्राणित होकर ब्रह्मलोकगामी हुए। . शास्ता ने धर्म-देशना के सन्दर्भ में कहा- "भिक्षुओ! न केवल वर्तमान में ही अपितु विगत में शास्ता प्रज्ञावान् तथा अन्य वादियों के सिद्धान्तों का मर्दन करने वाले ही रहे हैं। जातक का मेल बैठाते हुए उन्होंने कहा-"उस समय के पांच मिथ्यादृष्टि अमात्य पूरणकस्सप, मक्खलि गोशाल, पकुध कच्चायन, अजित केसकम्बली और निगण्ठ नातवृत्त थे। पिंगल वर्ण कुत्ता आनन्द था। महाबोधि परिव्राजक तो मैं ही था।" -जातक-अट्ठकथा, महाबोधि जातक, २२८ (हिन्दी अनुवाद), पृ० ३१२ से ३३० के आधार से। समीक्षा यह महाबोधि जातक तथा इस प्रकार के अन्य कथानक यही अभिव्यक्त करते हैं कि बौद्धों ने अपने प्रतिपक्षियों को हीन व तुच्छ प्रमाणित करने के लिए अनेक अनगढ़ कथानक रचे हैं। (३६) मयूर और काक बुद्ध के उत्पन्न होने से पूर्व तैथिकों को लाभ और यश की प्राप्ति थी, किन्तु, उनके उत्पन्न होने पर उनका लाभ और यश जाता रहा। उनकी दशा वैसी ही हो गई, सूर्योदय ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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