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इतिहास और परम्परा]
त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
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शित करते हुए कहा-"अर्धचन्द्राकार देकर निकाल दिये जाने से पूर्व स्वयं ही चला जाना अच्छा है। जल-रहित कुंओं के समान अश्रद्धावान् के आश्रय में नहीं रहना चाहिए। जल-रहित कुंए को खने भी तो उसका पानी कीचड़ की गन्ध वाला ही होगा। श्रद्धावान् के आश्रय में ही रहे । .........'अत्यन्त साथ रहने से, साथ न रहने से तथा असमय ही मांग बैठने से मित्रता नष्ट हो जाती है ; अतः न तो निरन्तर जाये, न अति विलस्ब से जाये और न असमय ही मांगे इस प्रकार मित्रता टूटती नहीं है। अति चिरकाल तक साथ रहने से प्रिय मनुष्य भी अप्रिय हो जाता है। तेरे अप्रिय बनने से पूर्व ही हम तुझे सूचना देकर जाते हैं।"
राजा ने निवेदन किया-"यदि आप हमारी प्रार्थना स्वीकार नहीं करते हैं, अपने अनुयायियों की बात नहीं रखते हैं तो यह वचन दें, फिर शीघ्र ही आयेंगे।"
बोधिसत्त्व ने उत्तर दिया-"महाराज! इस प्रकार विचरते हुए मेरे अथवा तुम्हारे शरीर को हानि न हुई तो सम्भव है कुछ दिनों बाद फिर हम एक-दूसरे को देखें।"
बोधिसत्व ने राजा को धर्मोपदेश दिया-"महाराज ! अप्रमादी रहें।"
बोधिसत्त्व ने उद्यान से प्रस्थान किया । अनुकूल स्थान पर भिक्षाटन कर वाराणसी से भी निर्गमन कर दिया । क्रमशः चारिका करते हुए हिमालय पहुंचे। कुछ समय वहाँ रहे और नीचे उतरे। एक प्रत्यन्त-ग्राम के आश्रय से जंगल में रहने लगे।
__ महाबोधिकमार परिव्राजक के चले जाने पर अमात्यों की पांचों अंगुलियां घी में हो गई। वे न्यायाधीश हो कर फिर लूट मचाने लगे। साथ ही वे सोचने लगे-"महाबोधि कुमार यदि पुनः यहाँ आ गया तो हम नहीं बच पायेंगे। ऐसा उपक्रम करना चाहिए, जिससे वह पुनः यहाँ न आ सके।" उन्होंने चिन्तन किया, प्राणी प्राय: आसक्ति के स्थान को छोड़ नहीं सकता। यहां उसकी किसमें आसक्ति है ? उन्होंने अनुमान लगाया, महारानी में उसकी आसक्ति है; अत: सम्भव है, इसी कारण से वह पुन: आये। इसे पहले ही मरवा दें।
अमात्य हिल, मिल कर राजा के पास आये। गंभीरतापूर्वक बोले-"देव! नगर में एक चर्चा है।"
"क्या ?" "महाबोधि परिव्राजक और महारानी के बीच अवांछनीय पत्राचार चलता है।"
"किस प्रकार का?" , महाबोधि परिव्राजक ने देवी को लिखा है-"क्या तू राजा को मरवा कर मुझे छत्रपति बनवा सकती है ?" रानी ने उसे उत्तर में लिखा है-"राजा को मारने का दायित्व मेरे पर है। शीघ्र चले आओ।"
__ अमात्यों के पुनः पुनः कहने से राजा को उस कथन पर विश्वास हो गया। उसने पूछा-"क्या करें?"
"देवी को मरवा डालना चाहिए।"
राजा ने निर्देश दिया- "उसे मार डालो और टुकड़े-टुकड़े कर शौचालय के कुएं में डाल दो।"
अमात्यों ने राजा के आदेश को क्रियान्वित किया। रानी के वध की बात सारे शहर में फैल गई। चारों राजकुमार राजा के इसीलिए शत्रु हो गये। राजा बहुत भयभीत हुआ।
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