________________
४२८
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:१ उद्यान से राज-द्वार के समीप आये। कुत्त ने मुह बाया, चारों दांत बाहर निकले और अपनी भाषा में चिल्लाना आरम्भ किया-"मन्ते ! क्या आपको सारे जम्बूद्वीप में अन्यत्र कहीं भिक्षा नहीं मिलती है ? हमारे राजा ने आपके वध के लिए पांच अमात्यों को नियुक्त किया है। नंगी तलवारें लेकर वे द्वार के पीछे छुपे खड़े हैं । अपने प्राणों को हथेली में रख कर आप आगे न बढ़ें। शीघ्र ही लौट जायें।"
___ बोधि परिव्राजक को सभी बोलियों का ज्ञान था ; अतः वे उसे भली-भांति समझ गये। कुछ क्षण वहीं रुके और उद्यान की और लौट आये। प्रस्थान के अभिप्राय से वे अपनी आवश्यक सामग्री को एकत्रित करने जुट पड़े।
राजा गवाक्ष में खड़ा सब देखता रहा। उसने सोचा, यदि यह मेरा शत्रु होगा तो उद्यान में लौटते ही सेना को एकत्र कर युद्ध की तैयारी करने लगेगा; अन्यथा अपनी वस्तुओं को बटोर कर प्रस्थान में संलग्न हो जायेगा। मुझे इस बारे में जानकारी करनी चाहिए। वह उद्यान पहुंचा। बोधिसत्त्व अपनी सामग्री बटोर रहे थे । वे उस समय पर्णशाला से निकल चंक्रमण के चबूतरे पर थे। राजा ने प्रणाम किया और एक ओर खड़े हो कर गाथा में कहा :
किं नु वण्डं कि अजिनं किं छत्तक उपाहनं कि अंकुसं चपत्त व संघाटि चापि ब्राह्मण ।
तारमाणरूपो गण्हासि किं नु पत्थयसे दिसं ॥१॥ ब्राह्नण ! दण्ड, अजिन, छत्री, उपानह, थैला, पात्र और संघाटी को शीघ्रता से क्यों बटोर रहे हो ? क्या प्रतिष्ठासु हो? ।
___ बोधित्त्व ने सोचा, यह मेरे क्र्तृत्व से अनभिज्ञ है। मुझे इसे बोध देना चाहिए। उन्होंने गाथा में कहा :
ददासेतानि वस्सानि वुसितानि तवन्तिके नाभिजानानि सोनेन पिङ्गलेन अभिनिकूजितं ।।२॥ स्वायं वित्तो व नवति सुक्कदाहं विवंसयं ।।
सव सुत्वा समरिस्स वीतसद्धस्स मम पति ॥ ३॥ राजन ! बारह वर्ष तक मैं तेरे पास रहा । मैं नहीं जानता, पिंगल कुत्ते ने कभी भौंका हो। किन्तु, अब यह जान कर कि तेरी तथा तेरी पत्नी को मेरे प्रति श्रद्धा नहीं रही, वह क्रुद्ध हो कर, दाँत बाहर निकाल कर भौंकता है। राजा ने अपना दोष स्वीकार किया और क्षमा मांगते हुए कहा :
अहु एस कतो दोसो, यथा भाससि ब्राह्मण,
एस मिय्यों पसीवामि, वस ब्राह्मण मा गम ॥४॥ ब्राह्मण ! जैसे तुम कहते हो, वैसा मेरे से सदोष आचरण हो गया है। अब मैं और अधिक श्रद्धवान् हूँ । यही रहें, प्रस्थान न करें।
"महाराज ! बिना प्रत्यक्ष देखे दूसरों की बात मानने वाले के साथ पण्डितजन नहीं रहते"; बोधिसत्त्व ने यह कहते हुए उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया और उसका अनाचार प्रका
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org