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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:१ की । अनुचरों ने परिस्थिति से उसे अवगत किया । बोधिसत्त्व जब भोजन कर चुके तो राजा ने उनके उपपात में बैठ कर पूछा--"भन्ते ! क्या आज आपने किसी अभियोग का निर्णय दिया था ?"
"हाँ, महाराज !"
"भन्ते ! यदि आप इस कार्य को अपने हाथ में ले लें, तो जनता की उन्नति होगी। मेरा निवेदन है, अब से आप ही न्यायाधीश का पद सम्भालें।"
“महाराज ! हम प्रवजित हैं। यह हमारा कार्य नहीं है।'
"भन्ते ! जनता पर अनुग्रहशील हो कर ऐसा करें। आप पूरा समय इस कार्य में न लगायें। प्रातः उद्यान से यहाँ आते समय और भोजन कर उद्यान को लौटते समय चार-चार अभियोगों का निर्णय दें। इस प्रकार जनता की अभिवृद्धि होगी।"
राजा के पुन:-पुनः अनुरोध करने पर बोधिसत्त्व ने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। वे प्रतिदिन आठ-आठ अभियोगों का निर्णय देने लगे। बोधिसत्त्व की उपस्थिति से झूठे अभियुक्तों की दाल गलनी बन्द हो गई और अमात्यों के रिश्वत के द्वार सर्वथा बन्द हो गये। क्रमश: वे निर्धन होते गये। अमात्यों ने बोधिसत्त्व के विरुद्ध एक षड़यंत्र रचा। वे राजा के पास आये और उनसे कहा-"बोधि-परिव्राजक आपका अहित-चिन्तक है।" राजा ने इस कथन पर कोई ध्यान नहीं दिया। उपेक्षा दिखाते हुए कहा-"यह सदाचारी है, ज्ञानी है, ऐसा कभी नहीं हो सकता।"
अमात्यों ने पुनः कहा-'आप चाहे हमारे कथन पर विश्वास न करें, किन्तु, उसने सारे नगर-वासियों को अपनी मुट्ठी में कर लिया है । हम पांचों को वह अपना समर्थक नहीं बना सका है। यदि आपको हमारे कथन पर विश्वास न हो तो जब वह इस ओर आये, उसके अनुयायियों की ओर आप एक दृष्टि डालें।"
राजा असमंजस में पड़ गया। कभी वह सोचता, बोधि परिव्राजक ऐसा नहीं हो सकता। कभी सोचता, अमात्य भी मुझे अन्यथा परामर्श नहीं दे सकते। किन्तु, बोधि परिव्राजक जब राज-महलों की ओर आये तो राजा ने उनके मार्ग की ओर देखा। जन-समूह की अच्छी भीड़ लगी हुई थी। वे सभी बोधि परिव्राजक से अपने-अपने मुकद्दमों का निपटारा चाहते थे। राजा ने उन्हें उनका अनुयायी-वर्ग समझा। राजा का मन विषाक्त हो गया। अमात्यों को बुलाया और पूछा-"क्या करें ?"
"देव ! इन्हें गिरफ्तार कर लें।" "बिना किसी विशेष दोष के ऐसा कैसे कर सकते हैं ?"
"तो महाराज! आप इसका आदर-सत्कार करना छोड़ दें। स्वागत के अभाव में यह स्वतः समझ जायेगा और बिना किसी को सूचित किये ही चला जायेगा।"
राजा ने बोधि परिव्राजक के स्वागत में क्रमशः न्यूनता प्रारम्भ कर दी। पहले ही दिन उन्हें राज-सिंहासन पर न बैठा कर नंगे पल्यंक पर बैठाया गया। बोधिसत्त्व ने परिस्थिति को तत्काल भांप लिया। उद्यान से लौटते ही उन्होंने प्रस्थान का विचार किया। फिर उनका चिन्तन उभरा, निश्चयात्मक रूप से जान कर ही यहां से जाऊँगा। वे नहीं गये। अगले दिन उन्हें नंगे पल्यंक पर बैठाया गया और राजा के लिए बने चावलों में सामान्य चावल मिश्रित कर उन्हें परोसा गया। तीसरे दिन भी जब बोधिसत्त्व भोजन के लिए आये तो उन्हें ऊपर
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