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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
समीक्षा
यह प्रसंग तात्कालिक राज-व्यवस्था का बहुत ही गूढ़ परिचय देता है। गुप्तचर विभिन्न मतों के साधु बन कर गुप्तचरता करते, यह एक अद्भुत-सी बात है।
३४. पम्मिक उपासक
ऐसा मैंने सुना
एक समय भगवान् श्रावस्ती में अनाथपिण्डिक के जेतवनाराम में विहार करते थे, उस समय धम्मिक उपासक पाँच सौ उपासकों के साथ जहां भगवान् थे, वहाँ गया। पास जा भगवान् को अभिवादन कर एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे धम्मिक उपासक ने गाथाओं में भगवान् से कहा
"महाप्रज्ञ गौतम ! मैं आपसे पूछता हूँ कि किस आचारण का श्रावक अच्छा होता है ? घर से निकल कर बेघर होने वाला या गृहस्थ उपासक ?
"देव-सहित लोगों की गति और विमुक्ति को आप ही जानते हैं । आपके समान निपुण अर्थदर्शी कोई नहीं है। (लोग) आप ही को उत्तम बुद्ध बताते हैं ।
"आपने धर्म-सम्बन्धी पूरा ज्ञान प्राप्त कर अनुकम्पा-पूर्वक प्राणियों को (वह) प्रकाशित किया है। सर्वदर्शी ! आप (अविद्या-रूपी) पर्दे से मुक्त हैं, निर्मल रूप से सारे संसार में सुशोभित हैं।
"आपको 'जिन' सुन कर 'ऐरावण' नामक हस्तिराज आपके पास आया था। वह भी आपसे वार्तालाप कर (धर्म) सुन कर प्रसन्न हो, प्रशंसा कर चला गया।
___ "राजा वैश्रवण कुबेर भी धर्म पूछने के लिए आपके पास आया था। धीर ! आपने उसके प्रश्न का भी उत्तर दिया और वह भी (आप की बात) सुन कर प्रसन्न हो चला गया।
"जितने भी वादी तैथिक, आजीवक और निग्रन्थ हैं, वे सब प्रज्ञा में आपको वैसे ही नहीं पा सकते, जैसे कि शीघ्र चलने वाले को खड़ा रहने वाला।"
-सुत्तनिपात, चूलवग्ग, धम्मिक सुत्त (हिन्दी अनुवाद), पृ० ७५,७७ के आधार से ।
समीक्षा
यहाँ बुद्ध की प्रशंसा करते हुए निगण्ठों का उल्लेख मात्र किया गया है। सुत्त निपातअटकथा के अनुसार ये पांच सौ बौद्ध उपासक आकाशगामिनी विद्या के धारक थे व 'अनागामी' थे।
३५. महाबोधिकुमार
वाराणसी में ब्रह्मदत्त का राज्य-शासन था। काशी राष्ट्र में अस्सी करोड़ की सम्पत्ति वाला महाधनिक उदीच्य ब्राह्मण-कुल था। बोधिसत्त्व उस कुल में उत्पन्न हुए। उनका नाम बोधिकुमार रखागया । बड़े होने पर वे तक्षशिला गये, शिल्प सीखा और घर लौट आये ।
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