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________________ इतिहास और परम्परा ] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगष्ठ नातापुत्त ४२३ पिंगलकोच्छ ब्राह्मण लीन होकर बैठ गया और भगवान् बुद्ध ने उसे विस्तार से धर्म -मज्झिमनिकाय, चूल सारोपम सुत्तन्त, १-३-१० के आधार से । कथा कही । समीक्षा यह बुद्ध की अपनी विशेष शैली रही है कि उलझन भरे प्रश्नों को वे बड़ी चतुरता से टाल देते । अनेक स्थलों पर उन्होंने ऐसा किया है । ३३. जटिल सुत्त एक बार भगवान् बुद्ध श्रावस्ती में विशाखा मृगार-माता के पूर्वाराम प्रासाद में विहार कर रहे थे। बुद्ध सायंकालीन ध्यान सम्पन्न कर बाहर बैठे हुए थे । कोशल- राज प्रसेनजित् भगवान् के पास आया और अभिवादन कर एक ओर बैठ गया । उस समय काँख में केश व नाखून बढ़ाये सात जटिल, सात निगण्ठ, सात नग्न, सात एकशाटिक और सात परिव्राजक नाना सामग्री लिए भगवान् के निकट से गुजरे। प्रसेनजित् कौशल आसन से उठा, एक कन्धे पर उत्तरीय को व्यवस्थित किया, दाहिने घुटने को भूमि पर टिका जटिल, निगण्ठ आदि जिस ओर जा रहे थे, उस ओर उसने करबद्ध हो तीन बार अपना नाम सुनाया। उनमें से कोई नहीं रुका। सभी चले गए । राजा पुनः भगवान् के पास आया और उसने पूछा - "भन्ते ! लोक में जो अर्हत् या अर्हत्-मार्ग पर आरूढ़ हैं, क्या ये उनमें से भी एक हैं ?" बुद्ध ने उत्तर दिया – “महाराज ! आपने तो गलत समझ लिया । ये तो गृहस्थ, काम भोगी, बाल-बच्चों में रहने वाले, काशी का चन्दन लगाने वाले, माला- गन्ध व उबटन का प्रयोग करने वाले और परिग्रह बटोरने वाले हैं । अर्हत् या अर्हत्-मार्ग पर आरूढ़ इनमें से कोई नहीं है । राजन् ! साथ रहने से, बहुत समय तक साथ रहने से और सदैव इस ओर ध्यान रखने से प्रज्ञावान् पुरुष के द्वारा ही किसी का शील जाना जा सकता है । इसी प्रकार व्यवहार से ही किसी की प्रामाणिकता का, विपत्ति आने पर स्थिरता का और वार्तालाप से ही प्रज्ञा का प्रज्ञावान् पुरुष अनुमान लगा पाता है ।" राजा ने सहसा कहा - "भन्ते ! आश्चर्य है । आपने सम्यक् ही बतलाया । इनमें से कोई भी अर्हत् या अर्हत्-मार्ग पर आरूढ़ नहीं है । ये तो मेरे गुप्तचर हैं । कहीं का भेद ले कर आ रहे हैं । इनसे मैं भेद ले लेता हूँ और वैसा ही समझता हूँ । अब ये भस्म आदि को घो डालेंगे, स्नान करेंगे, उबटन करेंगे, बाल बनवायेंगे, उज्ज्वल वस्त्र पहनेंगे और पांच प्रकार के काम-गुणों का उपभोग करेंगे ।" भगवान् के मुँह से गाथाएं निकालीं- वेश-भूषा से मनुष्य नहीं जाना जाता । बाह्य आवरण को देख कर ही किसी में विश्वास मत करो । संयम का स्वांग रच कर दुष्ट लोग भी विचरण करते हैं । नकली, मिट्टी या लोहे के बने और सोने के झोल चढ़े कुण्डल के समान कितने ही व्यक्ति साधुता का दोंगा पहिन कर घूमते हैं । वे अन्दर से मैले और बाहर से चमकते हैं । संयुक्त निकाय, जटिलसुत्त, ३-२-१ के आधार से । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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